शनिवार, 29 अक्टूबर 2011

बस चन्द दिनों

बस चन्द दिनों की तो बात है,
उनकी हमारी हुई मुलाक़ात है,
मुलाकात की तो बस बात है,
एक दो बार की मुलाकात है,

वो अपने आपे में थे,
हम अपने सहापे में थे,
कुछ बात उनकी तरफ से थी,
कुछ बात हमारी तरफ से थी,

यूँ ही बातों-बातों में,
थोड़ी बहुत मुलाकातों में,
वक्त गुजरता चला गया,
दिल एक होता चला गया,

उनको न रहा गया,
हमको न रहा गया,
अगली मुलाकात में,
मम्मी-पापा को बुला लिया गया,

अनजानों से मिले थे,
बात समझ गए थे,
तय उन्होंने कर दिया,
आपको आमंत्रण दिया,

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शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2011

आँखों के अंगारे

आँखों के अंगारे, यूँ बहुत कुछ कह जाते,
इन जलती आँखों में, परवाने समां जाते,
डर तो लगता है, इन शेरनी की दहाड़ से,
पर बात पते की पाते हैं, इनकी लताड़ से,

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इनकी यह

इनकी यह तिकड़ी कितना छा गई है,
हर किसी के मन को भा गई है,
हर किसी के दिल में समां गई है,
हँसते-हँसाते कितना इल्म थमा गई है,

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गुरुवार, 27 अक्टूबर 2011

दीवाने को माफ़

दीवाने को माफ़ कर दें, दीवाने से जो खता हो गई,
आपको यूँ खफा कर दिया, अति दीवाने से हो गई,

यह तो दीवानगी है, सही पहचाना आपने,
दीवाने की दीवानगी को, सही आँका आपने,

दीवानों की दिक्कत यही होती है,
दुनिया उनसे बस खफा होती है,
आपने इस दस्तूर को बदल दिया,
आपने दीवाने का दिल रख लिया,

आपकी ज़ुबाँ से अपना जो नाम सुना,
सुकून-ए-दिल मिला हुआ बहुत गुना,

आपकी मसरूफियत को जानते हैं,
आपके दिल को जो पहचानते हैं,
अनगिनत दीवानों को जानते हैं,
शायद उन्हीं में एक हमें मानते हैं,

दीवाने का पता लगाने की जरूरत नहीं,
दीवाना खुद ही हाज़िर हो जाता है वहीं,
दीवाने की मजबूरी है, बहुत बड़ी कहीं,
दीवाने को देख गलत समझ जाएँ कहीं,

दीवाना तो यूँ आपके सामने आ सकता है,
दीवाने को देख कर धक्का आपको लग सकता है,
शायद आपको यूँ यकीन न आ सकता है,
यह आपकी अदाकारी का दीवाना हो सकता है,


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सोमवार, 24 अक्टूबर 2011

गज़ब आशिकों

गज़ब आशिकों का मिजाज़ देखो,
ये रोज़ आशिकी में मरा करते हैं,
कभी इनसे तो कभी उनसे,
आशिकी की किस्से कहा करते हैं,


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उनकी निगाह

उनकी निगाह से गर नज़र मिल जाए,
बिन कहें नज़र का असर नज़र आए,
हम उनको वो हमको देखते रह जाए,
निगाह के तार से दिल से दिल जुड़ जाए,


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आईये आपको

आईये आपको कुछ दूर तक छोड़ दूँ,
घबराईये न आपको तन्हा न छोड़ दूँ,


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वो जो उधर

वो जो उधर से जा रहे हैं,
दूर से वो नज़र आ रहे हैं,
बातें किसी से बतिया रहे हैं,
उठ के जल्दी क्यूँ जा रहे हैं,


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आज दिलनसी

आज दिलनसी का चेहरा नज़र आया,
बड़ी आस लगी थी, कितने दिनों बाद देख पाया,


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कहने को

कहने को तो जिन्दगी में है, बहुत कुछ,
जब बात जुबां न आए तो क्या कहें कुछ,


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वो दिल की

वो दिल की दिल में रख लेते हैं,
हम जुबां से सब कह देते हैं,
बस एक गुनाह कर लेते हैं,
ज़ज्बात अपने जाहिर कर देते हैं,


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वो निकल

वो निकल जाते हैं, जिन्दगी से ऐसे,
जैसे की कभी आए ही न हो,
उनका अहसास भर रह जाता है ऐसे,
जैसे की अभी मिल कर गए हो,

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दो लफ्ज़ जिन्दगी

दो लफ्ज़ जिन्दगी में, यूँ तो बहुत कुछ कर जाते हैं,
पर दो नैन उससे भी ज्यादा, बहुत कुछ कर जाते हैं,

बोल की क्या ज़रुरत, जब नैन से नैन लड़ जाते हैं,
इश्क जब हो जाता है, नैन सब कुछ कह जाते हैं,

बोलियाँ क्या सीखें, जब अंदाज़ सब बता जाते हैं,
क्यूँ जाया करें वक्त, जब बिन बोलियाँ सता जाते हैं,

वो दो नैनो का मिलन, कितना सुकून दे कर जाते हैं,
नैन जब मिल जाते हैं, सुकून फिर सब छिन जाते हैं,

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शनिवार, 22 अक्टूबर 2011

कुछ पल जो

कुछ पल जो भूले नहीं जाते,
उनके साथ बिताये हर पल याद हैं आते,
न जाने वो कहाँ होंगे,
क्या पता उनको हम याद होंगे,

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गुरुवार, 20 अक्टूबर 2011

सुफन जब

सुफन जब कुफन बन जाती है, न जाने क्या-क्या बयाँ कर जाती है,
जो छिपाना होता है, सभी से दिल-ए-हाल वो भी यूँ बयाँ कर जाती है,

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कहते हुए वो

कहते हुए वो शर्मा जाता है,
कुछ कहने के लिए पास आता है,
पर वो दूर चला जाता है,
जाने क्यूँ ऐसा कर जाता है,

हर हाल में सुनना चाहती हूँ,
पर वो कह नहीं पाता है,
उसके ओंठ फडफडाते तो हैं,
पर कुछ कह नहीं पाते हैं,

दूर गर इस तरह वो जाता ही रहा,
कहते-कहते रुक जाता ही रहा,
तो क्या उसका ऐतबार करूंगी,
उससे इस तरह कैसे प्यार करूंगी,

उसे तो कुछ कहना होगा,
शर्म या डर को सहना होगा,
पास तो मेरे आना होगा,
नहीं तो फिर पछताना होगा,

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बुधवार, 19 अक्टूबर 2011

दिन-ओ-दिन

दिन-ओ-दिन उनको मैं याद करता चला,
उनकी ही याद में दिन-रात काटता चला,
पल-ए-वक्त उनकी ही याद से भरता चला,
जिन्दगी-ए-वक्त में कहीं मिल जाएँ भला,

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वो आखों

वो आखों में बसी उनकी यादें, रोज़ ताज़ा कर लेता हूँ,
इस तन्हा-सी जिन्दगी में, रोज़ उन्हें याद कर लेता हूँ,

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हम सफ़र

हम सफ़र यूँ जिन्दगी में, तन्हाई को बना लिया,
ऐतबार अब न किया, यूँ बेवफाई ने ठुकरा दिया,


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यूँ ही वक्त

यूँ ही वक्त-ए-बेवक्त, उसकी याद आ जाती है,
वक्त थम जाता है, आँख कहीं ठहर जाती है,


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सहज-ए-हकीकत

सहज-ए-हकीकत में, वक्त गुजरता कैसे है,
एक-एक लम्हा, रुका-सा सरकता जैसे है,


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वो इस

वो इस तरह से हमारी जिन्दगी से चले गए, जैसे कि आये ही न थे,
हमें इस तरह छोड़ दिया कि, संग हमने कुछ दिन बिताये ही न थे,

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जानती थीं आखें

जानती थीं आखें, तेरे हाल-ए-दिल को,
पर ओंठ कह न सके,
कोशिश बहुत की तुझसे मिलने को,
पर कदम उठ न सके,

जंजीर तो न थी पाँव में, डाली हमको,
पर पाँव बंधे से लगे,
ज़ज्बात-ए-दिल ने, बहकाया हमको,
पर हम बहक न सके,

हकीकत-ए-जिन्दगी ने, किया रूबरू हमको,
हालात-ए-दिल कह न सके,
बात समझ आई, इज्ज़त-ए-खानदान हमको,
नादान-ए-दिल दे न सके,

मोहब्बत-ए-आस, न दे सकूंगी तुझको,
वक्त जाया न कर सके,
कहीं और निगाह ये डालनी अब तुझको,
मुझसे अच्छी मिल सके,


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वो कुछ न

वो कुछ न कह रहे थे, होंठ उनके चुप लग रहे थे,
वो बस देख रहे थे, कसक-सी पैदा कर रहे थे,

उनको कैसे अहसास हुआ, मेरे दिल दिल में खास हुआ,
देख वो हमें रहे थे, निगाह न हम उनसे फेर रहे थे,

ये निगाह-निगाह मिलाने का सिलसिला, क्या सितम ढाता है,
जब निगाह मिले किसी से तो समझ में, आता है,

अब वो पास आ रहे थे, हम ठिठके जा रहे थे,
होश भी नहीं हमको, उनमें समाते जा रहे थे,

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गुज़रती आहों

गुज़रती आहों की गर्माहट से, दिल अपना गर्म कर लेता हूँ,
कब का ठण्डा हो चुका होता, दिल अपना नरम कर लेता हूँ,


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रूबरू-ए-दिल

रूबरू-ए-दिल, जिन्दगी को कर दिया,
अब हाल पूंछते हो, जब दिल किसी का कर दिया,


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दिल-ए-निगाह

दिल-ए-निगाह से बचकर कैसे जिन्दगी गुज़ार लेते हैं लोग,
इन हसीनाओं से बचकर कैसे जिन्दगी गुज़ार लेते हैं लोग,


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मंगलवार, 18 अक्टूबर 2011

राजा-ए-दिल

राजा-ए-दिल सभी होते हैं,
दीवानगी से पल्ले सभी ने झाडे होते हैं,
न जाने दिल की किस गहराई में,
किस-किस के दिल गाड़े होते हैं,


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इंतज़ार-ए-हातिब

इंतज़ार-ए-हातिब से, जिन्दगी बेकसार गुजरी,
जिधर भी नज़र गुजरी, उसका इंतज़ार गुजरी,


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सोमवार, 17 अक्टूबर 2011

वो नज़रें

वो नज़रें चुरा रहे हैं,
दूर ही दूर से,

वो निगाह न मिला रहे हैं,
दूर ही दूर से,

कैसे उनसे निगाह मिलाएं,
दूर ही दूर से,

कैसे उनके दिल में उतर जाएँ,
दूर ही दूर से,

वो नज़रें चुरा .................

.............................

पास जाने की जहमत जो हमने की,
दूरी और उन्होंने हमसे है अपनी की,

...............................

क्या कहें उनकी कशिश को,
दूर ही दूर से,

खिंच रहें हैं उनकी और,
दूर ही दूर से,

वो चले आ रहे हैं ईधर,
दूर ही दूर से,

नज़रें वो मिला रहें हैं,
दूर ही दूर से,

वो नज़रें चुरा ................

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वो मुड़कर

वो मुड़कर मुस्कुराकर चली गईं,
उनकी मुस्कान दिल में उतर गई,
जब भी आँखें हमारी बंद-सी हुईं,
याद उनकी दिल में घर-सी गईं,


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उनकी वो

उनकी वो तन्हाई, आज मैंने गौर से देखी,
हम साथ रहते, उनकी तन्हाई आज देखी,


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रविवार, 16 अक्टूबर 2011

उसकी वो

उसकी वो दिल-ए-आह की टीस, आज भी चुभती है,
दिल पत्थर कर लिया है, पर पत्थर में भी घुसती है,


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शनिवार, 15 अक्टूबर 2011

खफा ओ

खफा ओ हमसे हो गए, नाराज़ भी हैं हमसे,
खता बस इतनी है की, तारीफ़ उनकी है की,

खुश उन्हें कैसे करें, सोच रहें हैं यही,
खता की सजा कबूल है, बात है सही,

हमको अंदेशा था, इस बात का, नाराज़ ओ हो जायेंगे,
खुश होने के साथ-साथ, दीवाना हमको समझ जायेंगे,

गर दीवाने दिमाग से चलते, तो दीवाने कैसे होते,
दीवानगी के किस्से, दुनिया में मशहूर ही न होते,

खता दीवानों की, नज़र अन्दाज़ की जाती है,
उनकी दीवानगी, नज़र किसी को न आती है,

हँसते हैं सब, दुनिया में दीवानों की बातों पर,
सजते हैं सब, मुशायरे दीवानों की बातों पर,

खुश हों आप, पुल-ए-तारीफ़ बाँधे,
खफा यूँ हुए, हमारे ही हैं हाँथ बाँधे,

हमें अपनी दीवानगी से है मतलब, खुश आपको कर जायेंगे,
औकात जानते हैं अपनी, आपके पास तक न फटक पायेंगे,

आपको देखकर चन्द जुमले यूँ ही निकल आते हैं,
दिल का बोझ इस तरह आपके पास उतार आते हैं,

बात और कुछ नहीं है, आपसे वफ़ा नहीं हैं,
हमारी दिल-ए-दिलबर और हैं,
वफ़ा उससे पूरी है,
आपकी अदाकारी-ए-अदावत से सीख ली पूरी है,

जिन्दगी के बहुत से झमेलों को आप जिस अदा से झेल जाती हैं,
आपकी यही अदा हमको भाती है, सीख दुनिया की मिल जाती है, 

गर आपको नाराजगी है इतनी, तारीफ़ यूँ न करेंगे,
दिल-ही-दिल में रखेंगे, और बस किसी से न कहेंगे,

बस नाराजगी आप दूर करो, हमारा बोझ दूर करो,
हम यह नहीं चाहते की, आप हमसे यूँ नाराज़ रहो,

खता की सजा दो की, माफ़ी, है आपके ऊपर छोड़ा,
पर गुज़ारिश एक आपसे, हमारे बीच न आये रोड़ा,

अब लेता हूँ विदा, कहता हूँ अब अलविदा,
रोज़ आपको देखूँगा, सीख तो आपसे लूँगा,

गुस्ताखी कर यूँ परेशान, न करूंगा,
दिल की बात, दिल में ही रख लूँगा,

कागज़ पर कलम से लिख लूँगा,
ब्लॉग पर यूँ कमेन्ट न लिखूंगा,

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खींच लाती

खींच लाती है, उसकी पाक मोहब्बत उसे उनके पास,
वो कितना भी दूर रहें, रहेंगे हमेशा उनके खास्मखास,


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कदम भारी

कदम भारी, अपनी ही लाश लिए घूमता हूँ,
बेवफाई उनकी देखी, न आश लिए घूमता हूँ,


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वो पहली

वो पहली मुलाक़ात का अहसास,
आज तक जहन में सहेज रखा है,
जब भी तेरी बेरुखियायी होती है,
उन्ही लम्हों को याद कर रखा है,


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अब हमें

अब हमें तन्हा-सा छोड़कर,
कब तक रहोगे यूँ ही,
याद तो हम आयेंगे तन्हाई में,
कब तक रहोगे यूँ ही,


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वोह ! कातिल

वोह ! कातिल इतनी नजदीकी न सह पाऊंगा,
आगोश में समाँ ले मुझे, तेरे बिना न रह पाऊंगा,
निगाह से निगाह में उतर जाने दे, तुझे निगेहबान बनाऊंगा,
दिल से दिल में समां जाने दे, तुझे दिलरुबा बनाऊंगा,


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हालात -ए-नाज़िश

हालात -ए-नाज़िश,
उनके दिल-ए-हालात न समझ पाया,
जिन्दगी में सबसे ज्यादा जिसको चाहा,
उसके दिल-ए-हालात न समझ पाया,

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कहने की

कहने की बात, जुबाँ से क्या कहें,
दिल में रखें, आखें सब बयाँ करें,


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हर वफ़ा

हर वफ़ा से पहले, नज़र कोई न चुराता है,
जब बेवफा हो जाता है, न भी न आता है,


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दीदार हो

दीदार हो जायेंगे, आँखों में चमक आ जायेगी,
आप को जो देख लेंगे, रौनक-सी आ जायेगी,


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हमसफ़र

हमसफ़र कुछ बिफर-सा गए,
कहते हुए कुछ ठहर-सा गए,
जाते-जाते रुक-सा गए,
मुड-मुड के देख-सा गए,

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शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2011

दूर वो जिन्दगी

दूर वो जिन्दगी से अब,
धीरे-धीरे जाने लगे हैं,
उनकी चाल से महसूश किया,
किसी की अपनाने लगे हैं,

हमने भी उन्हें छोड़ दिया,
आज़ादी दे दी,
तब से लेकर तब तक,
जिन्दगी उनके बिना ही जी ली,

वर्षों बाद दिखे थे,
एक हसीना के साथ,
घूम रहे थे दोनों,
डाले हाथों में हाथ,

हम उनके सामने न आए,
वो हमको न देख पाए,
दूर से ही नज़र रखी,
अपनी ही सहेली दिखी,

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कुछ खुला

कुछ खुला ये दिल रखो,
जब तक कोई यहाँ रहने न आ जाए,
फिर भले ही ताला लगा रखो,
जब कोई यहाँ बस जाए,

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वो निगाहें

वो निगाहें अपनी न छुपाओ,
हमको देखो, हमसे न शरमाओ,
हमसे क्यूँ ये शर्म-सी है,
निगाह से निगाह मिलाओ,


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हम आके

हम आके, उन्हें निगाह बस्त कर बैठे
ओ आके हमसे निगाह एक कर बैठे,

वो अहसास निगाह से निगाह मिलने का,
कुछ हम ले बैठे, कुछ वो ले बैठे,

उस लम्हे को हम आज तक संभल बैठे,
बार-बार याद कर बैठे, बार-बार अहसास कर बैठे,

जब भी वो हमसे रूठे, जब भी हम तन्हा बैठे,
पल वो निगाह में ला बैठे,

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गुरुवार, 13 अक्टूबर 2011

चन्द्रमुखी चौटाला - 3

कविता कौशिक, Kavita Kaushik
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आपका अंदाज़-ए-उर्दू भा गया,
आपकी अदा से अदावत पा गया,
वाह-वाह क्या बात है,
आपकी जुबाँ-ए-उर्दू लाजवाब है,

वो नाज़ुक अंदाज़, आपका आज हटकर था,
वो अदाकारी का अंदाज़, आज आपका नायाब था,

वो लफ़्ज़ों को बोलने का अंदाज़,
हमें बहुत कुछ सिखा गया आज,
आज का आपका नजरिया-ए-नाज़,
आपकी नजाकत दिखा गया आज,

नाज़ुक-ए-हुश्न की हसीना आप फब रही हैं,
आज आप इस लिबास में हसीन लग रही हैं,
आज आपके इस अंदाज़ के हर कोई दीवाने हुए,
आपकी अदाकारी के किस्से गली-गली सुनाने हुए,

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हमसाया हुश्न

हमसाया हुश्न नवीसों का,
करके खली ये मकाँ चला,
अब कोई और यहाँ रह ले,
मैं तो अपने मकाँ चला,

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कुछ निगाहें उनकी

कुछ निगाहें उनकी,
दूरी-दूरी बना रही थी,
पास आने से,
कतार रहीं थीं,

दूर से निगाह भी,
न मिला रहीं थीं,
दूर-दूर ही वो,
चली जा रही थीं,

सोचो,
मंज़र-ए-हकीक,
क्या गुजरी होगी,
मेरे दिल पर,

जो रोज़ आगोश में,
मचलती थीं,
आज दूर से ही,
निकलना चाहती थीं,

जाते हैं,
वजह को,
तलाशते हैं,

क्यूँ दूर-दूर,
ये,
मुगालते हैं,


.

दूर अक्नायितों से

दूर अक्नायितों से,
आवाज़-सी आती है,
कोई निगाह,
बार-बार,
देख-सी जाती है,

मन ही मन में,
सोचता हूँ,
यह हूर कौन हैं,
जो तक-सी जाती है,

क्यूँ मुझे,
देख जाती है,
देखकर,
अनदेखा,
कर जाती है,

रोज़-रोज़,
इसी तरह,
छत पर,
चली आती है,

बैठा हूँ,
अपनी किताबें लेकर,
अब कोई,
बहाना लेकर,

सोच उसी के,
बारे में,
रहा हूँ,
समझ न,
पा रहा हूँ,

रोज़-रोज़,
मैं भी,
छत पर,
चला आता हूँ,

इक रोज़,
वो न आयी,
बड़ी देर,
नज़र बैठाई,

सीडियों पर,
आवाज़ आयी,
झट से निगाह,
किताब में,
गड़ाई,

बहिन है,
मेरी आयी,
साथ उसके,
वो भी आयी,

मेरी तो हवा,
निकल आयी,
क्या शिकायत,
लेकर आयी,

फिर कभी वो,
छत पे न आयी,
आज तक है,
आस लगाई,

बात बाद में,
पता चलाई,
उसकी तो,
हो गयी सगाई,

यहाँ तो बस,
घूमने है आयी,
वो हो गयी,
अब परायी,

हाय वो लम्हा,
कभी-कभी जिन्दगी भर सताता है,
जब सामने से मोहब्बत आती है,
पर इश्क इतराता है,

हिम्मत गर उस वक्त कर जाता,
उसे इस वक्त अपने पास पाता,

.

उसने

उसने,
ये जिन्दगी,
हंसकर,
गुज़ार दी,

अहसास तक,
न होने दिया,
रोकर,
गुज़ार दी,

तन्हाई में,
अपनी,
किसी को,
न शामिल किया,

भरी भरकम,
जिन्दगी को,
अकेले ही,
उसने जिया,

मिलता था,
ख़ुशी से,
गले लगकर,
सभी से,

खिलता था,
चेहरा,
खिली-खिली,
हंसी से,

दिल के,
आंसुओं को,
आँखों की,
नमी,
न बनने दिया,

उन्ही से,
सींचकर,
नूर,
अपना,
है बनने दिया,

.

वो नज़र

वो नज़र,
किस तरह,
मुझे,
पड़ने की,
कोशिश,
कर रही है,

वो नज़र,
किस तरह,
अपने को,
छुपाने की,
कोशिश,
कर रही है,

मुस्कान-ओ-हैदर से,
चेहरा,
खिल,
उठा है,

उसे देखकर,
मेरा दिल,
मचल,
उठा है,

ये सवारीं,
जुल्फें,
ये तक्बीरियत,
बैठने की,

सफा-ए-हुश्न से,
मत पूछो,
वज़ह,
रूठने की,

फ़नक-ए-रूह,
अब,
सामने,
आईं है,

अनक-ए-रूह,
तब,
हमने,
मिलाईं हैं,

.

बुधवार, 12 अक्टूबर 2011

माजरा ये मोहब्बत

माजरा ये मोहब्बत, यारों, समझ से समझ आता है,
जब होती है मोहब्बत तब माज़रा ये समझ आता है,

बिन मोहब्बत किये, कईओं ने दीवाना समझा,
कितनों ने ताने दिए, कईओं ने बेगाना समझा,

पर वो मोहब्बत की गहराई जानता है, यारो,
उसने मोहब्बत निभायी है, यारो,

उसके किस्से मशहूर हुए ज़माने में,
हूर जो मिली उसे अनजाने में,

तन्हा होकर वक्त जो उसने बिताया,
इश्क ने एक दिन उसे नूर-ए-खुदा दिलाया,

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उनकी उलझनों से

उनकी उलझनों से,
कुछ सुलझनों को,
सुलझा-सुलझा कर,
उलझा-उलझा दिया,

सोच लिया,
समझ लिया,
जान लिया,
पहचान लिया,

उनकी उलझनों में,
खुद को उलझा लिया,
उलझनों को,
सुलझा दिया,

.

मंगलवार, 11 अक्टूबर 2011

इश्क-ओ

इश्क-ओ-हालात ज़िबरत की खूबी,
हर माशूक को ले जाती है,
कोई कितना ही बचने जाए,
मोहब्बत सबको बहा ले जाती है,

.

बेबसी-ओ

बेबसी-ओ-अक्नियात की,
आखों से होती है,
जब आखों से आखों मिली हों,
किसे फ़िक्र हालात की होती है,

.

कृतिका कामरा - 6

कृतिका कामरा Kritika Kaamra


वाह साफ़ाकियत-ए-मजमूनात,
तेरे हुश्न के लिए क्या कहूँ,
गोशा-ए-लफ़्ज़ों को रहने दूँ,
दीदार-ए-अदा, आखें खुली रखूँ, 

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खो-सी गयी

खो-सी गयी ख्यालों में,
डूब-सी गयी अंधेरों में,
चलती-सी गयी घड़ियों में,
सोती-सी गयी ख्वाबों में,

वक्त कटता-सा गया,
हाथ रखता-सा गया,
अहसास होता-सा गया,
कोई जगाता-सा गया,

चौंक गयी,
उठ गयी,
ज़ज्बातों को,
संभाल गयी,

चेहरा न,
पड़ने दिया,
हाथ उसका,
पकड़ लिया,

सहेली थी,
रूम मेट मेरी,
चेहरे पर थी,
मुस्कान मेरी,

.

चले आये हैं

चले आये हैं,
ख्वाबों में,
बिना दरवाज़ा,
खटखटाए,

बैठते हैं,
देखते हैं,
बतियाते हैं,
सुलाते हैं,

सो जाते हैं,
जगाते हैं,
बिना बताये,
चले जाते हैं,

रोज़ यही होता है,
दिल उन बिन न सोता है,
रात भी न कटती है,
दिनभर भी न जगती है,
अलसाई-सी रहती है,

चले आये हैं .............

प्यार उन्हीं से होता है,
उनके आगोश में खोता है,
अच्छी नींद से सोता है,
ख्वाबों में उसे देखता है,


.


वो ख़ामोशी

वो ख़ामोशी,
अब,
आदत-सी,
हो,
गयी है,

शोर से,
दूरी-सी,
हो,
गयी,
है,


.


तन्हाईओं में

तन्हाईओं में उसे,
पुकारता चला,
दिल ही दिल में,
यादारता चला,

ईधर से उधर,
टहलता चला,
मन ही मन,
मचलता चला,

तन्हाईओं में .......

टकराया न किसी से,
अपने आप को,
जिन्दगी में,
संभालता चला,

खोया है तुमको जबसे ,
अपने आप को,
जिन्दगी में,
रम्भालता  चला,

तन्हाईओं में .......

.

वो, पास से

वो,
पास से,
गुज़र,
जाते हैं,

नज़र,
न,
ऊपर,
उठाते हैं,

उनके,
आने का,
अहसास,
हम,
भांप,
जाते है,

.........

औरों से,
बतियाते हैं,
हँसते हैं,
हँसाते हैं,

एक नज़र,
हमारी तरफ,
न फेरते हैं,
न फिरयाते हैं,

............

रोज़-रोज़,
आते हैं,
रोज़-रोज़,
चले,
जाते हैं,

हम,
देखते ही,
रह,
जाते हैं,

पास भी,
न,
फटक,
पाते हैं,

.........

पर,
एक अहसान,
वो,
कर,
जाते हैं,

चेहरा,
अपना,
हर रोज़ 
दिखा,
जाते हैं,

दिया,
दिल का,
जला,
जाते हैं,

रोशन,
निगाह,
कर,
जाते हैं,

आस,
एक,
जगा,
जाते हैं,

जाते-जाते,
कुछ ऐसा,
कर,
जाते हैं,

.

उलझन-सी है

उलझन-सी है,
कशमकश-सी है,
ठहराई-सी है,
गहराई-सी है,

कदम क्या उठाऊं,
रूक जाऊं, चली जाऊं,
बैठे-बैठे समझ न पाऊं,
किस पर ऐतबार कर जाऊं,

ज़माना बड़ा है,
अपना न कोई खड़ा है,
जिधर नज़र पड़ी है,
घूरती नज़र गडी है,

अहसान अब न ले सकूं,
बोझ उसका न सह सकूं,
अह्सानदार बड़ा होता है,
हर जगह खड़ा होता है,

उलझन-सी ....

.

सोमवार, 10 अक्टूबर 2011

अहसास

अहसास,
उनकी आँखें,
दिला रही हैं की,

वो किसी,
और को,
चाहते हैं,

दिल में,
एक डर-सा,
बैठा रहीं हैं, की

वो हमसे,
दूर होना,
चाहते हैं,

इस कशमकश की,
जिन्दगी से,
बाहर कैसे,
निकलूँ मैं,

कैसे उनको,
किसी और,
के लिए,
छोड़ू मैं,

दिल,
सख्त करूँ,
या,

बिना बताये,
ही,
चली जाऊं,
उनको,

अब,
किसी और,
के लिए,
छोड़ जाऊं,

कुर्बानी,
अपने,
दिल की,
दे जाऊं,

इस कशमकश की ........................

.

उसे न हँसता

उसे न हँसता हुआ देखा,
उसे बस उदास-सा देखा,
चेहरे की रोनक खो-सी गयी है,
कोई हूर-सी दिल तोड़ गयी है,

तन्हाई को उसने अपना लिया है,
रोशनाई को उसने छोड़ दिया है,
अब हर नज़र उसे जला-सी जाती है,
अब हर निगाह उसे रुला-सी जाती है,

नज़रें मिलाने से डरने लगा है,
किसी पर न अब मरने लगा है,
दूर-दूर हसीनाओं से रहने लगा है,
करीब न किसी को सहने लगा है,

आज चेहरा खिला था उसका,
महबूब नया मिला था उसका,
तभी फोन सहेली का आया,
आज न आ सकूंगी बताया,

उसने कल का फ़साना दिखाया,
फोन पर उसका फोटो दिखाया,
जिससे कल मिल कर है आई,
राज़ उसके खिले चेहरे का पाई,

यहाँ दिलों के खेल में, बातें ऐसी बेसुमार होती हैं,
जिन पर हो निगाह, वही अपने खास की होती हैं,

ओ,
उतरता-सा गया,
दिल में,
समाता-सा गया,

रोक न सकी,
अपने को,
टोक न सकी,
सपने को,

ख्वाबों की,
दुनिया में,
खोने-सी,
लगी,

मन-ही-मन,
उसे,
अपनाने-सी,
लगी,

बात उससे,
न.
अभी,
हुयी थी,

नज़र न,
अभी,
दो-चार,
हुयी थी,

जाता देखा था,
उसे राह पर,
दूर-से,
निगाह कर,

उसकी,
वो चाल,
कह गयी,
उसका हाल,

खोई-खोई-सी,
हो गयी,
कुलबुलाहट-सी,
हो गयी,

नीचे जा रही हूँ,
कदम उठते नहीं,
ओ कब मिलेगा,
जान सकते नहीं,

पानी लाना,
मेहमान आयें हैं,
पापा के पुराने
दोस्त आयें हैं,

बहुत दिनों बाद,
तेरे पापा से,
मिलने,
है आयें हैं,

पानी लाई,
नज़र उठाई,
वहाँ उसे,
बैठा पाई,

सहम-सी गयी,
सकपका-सी गयी,
जल्दी-से ट्रे रख,
लौट-सी गयी,

माँ ने तभी,
और बताया,
उनका सुपुत्र,
है साथ आया,

याद दिलाने,
पुराना वादा आया,
तेरे लिया,
है रिश्ता लाया,
.

रविवार, 9 अक्टूबर 2011

नख्तूल-ए-नहमक

नख्तूल-ए-नहमक, फितरन से बाज़ न आते,
रोज़-रोज़ देखने हुश्न मेरा, मेरी गली चले आते,


.

ज़हन-ओ-सिफ्कत

ज़हन-ओ-सिफ्कत, रूठी है किस्मत,
किसे किस्सा अब बनने दें,
जिन्दगी अपनी ही न सम्भाली जाती,
किसे हिस्सा अब बनने दें,

.

हालात-ए-ज़हफर

हालात-ए-ज़हफर, अब न बता सकूँगा,
कितने हैं जख्म, अब न बता सकूँगा,
रहने दे मुझे मेरे, हालात-ए-अंजुमन में,
सहन सब कर लूँगा, तन्हाई-ए-सुखन में,


.

कुछ तो लोग - 11


.
कुछ तो लोग कहेंगे

ये लडकियां भी,
क्या गुल खिलाती हैं,
जवानों को तरसाकर,
बूढों से दिल लगाती हैं,

.

अब तो

अब तो इन तन्हाईओं,
में भी मज़ा आने लगा है,
अकेलेपन के इन लम्हों,
में भी मज़ा आने लगा है,

.



कहे, आंसुओं ने

कहे,
आंसुओं ने,
किस्से,
हम तो,
चुप ही,
रहते हैं,

उस
बेवफा की,
याद में,
कमबख्त,
बहते ही,
रहते हैं,


.

माकूल-ए-हालत

माकूल-ए-हालत,
बहुत बेदर्दी से गुज़र जाते हैं,
वो करीब आते-आते,
बहुत दूर से गुज़र जाते हैं,


.

न कुरेदो

 न कुरेदो मेरे ज़ख्मों को,
नासूर वो पहले ही बन चुके,
दूर रखो अपने ज़ज्बातों को,
बहुत अपने गम सुना चुके,

.



अब वो मेरी

अब वो मेरी जिन्दगी में,
दुबारा आना चाहते हैं,
पर बात यह है कि,
मैंने दर बंद कर दिए हैं,

कैसे उनको बताऊँ,
दिल पर क्या बीती,
उनसे अल्हदा होकर,
जिन्दगी की जंग जीती,

अब वक्त मिला उन्हें,
मेरी तरफ-तारुफ़ होने का,
जब सारी जिन्दगी बीती गयी,
तब ख्याल आया साथ निभाने का,

अब किसी और की हो चुकी,
तुमसे अब बात बहुत हो चुकी,
अपना वक्त बहुत बेजाया कर चुकी,
तुमसे नज़र अब दूर हो चुकी,

.

वो हमसाया

वो हमसाया बनकर,
मेरे करीब आया,
करीब आकर,
मेरा मन बहलाया,

मन बहलाकर,
मुझे हंसाया,
मुझे हंसाकार,
उसने पटाया,

मुझे पटाकर,
सपना दिखया,
सपना दिखाकर,
दिल लगाया,

दिल लगाकर,
अपना बनाया,
अपना बनाकर,
दूर लाया,

दूर लाकर,
छोड़ आया,
फिर छोड़कर,
लेने न आया,

न आकर,
किस-किस की बनवाया,
रोज़ बनवाकर,
न जाने कितना रुलाया,


वो अपनी

वो अपनी गली से जाते हैं,
पीछे-पीछे से हम भी आते हैं,
चुपके से उनका घर देख आते हैं,
रोज़ अब उनके दीदार हो जाते हैं,


.

हर सिफत

हर सिफत,
यूँ तनहा-सी होती है,
वो अभी भी,
यूँ तल्खा-सी होती है,


.

अब वो

अब वो आते हुए भी शरमाते हैं,
पहले तो बड़ी बेताल्लुफी दिखलाते हैं,
न जाने क्या बात है, न बतलाते हैं,
क्या किसी और से इश्क फरमाते हैं,

इन्तहातन वो

इन्तहातन वो इश्क की इन्तहा न समझे,
रोज़ आ जाते हैं, हुश्न लेकर इश्क न समझे,


.

वो तनहायीओं

वो तनहायीओं में उनको याद करना,
याद करते-करते उनमें ही खो जाना,
कितना इत्तफाकन होता है, ये, जाना,
ग़मों में डूबकर तुझे याद फिर करना,


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शनिवार, 8 अक्टूबर 2011

कृतिका कामरा - 5



कृतिका कामरा

तेरे नूर से,
मुझे भी नूर मिले,
तेरे चेहरे जैसा,
मेरा भी खिले,

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कुछ तो लोग - 11




डॉ. निधि वर्मा

वो गहरी सांस,
जिन्दगी में उतर गयी,
वो बन्द आँख,
वो अपने में उतर गयी,

कुछ बात है आप में,तभी तो वो अपने आप को भूल जाते हैं,
ऊपर से गुस्सा जताते हैं,
पर अन्दर-ही-अन्दर आप में खो जाते हैं,

रोना आ गया,
जिन्दगी की इतनी-सी उनफ़त से,
अब तो रोज़ ही,
मुलाकात होगी इसी तरह उनसे,

किसका गुस्सा,
किस पर प्यार बन कर उतरा है,
खुद खुश होने के लिए,
किसी और को खुश करने उतरा है,

.

हमसे तो

हमसे तो आपने कहीं न,
जिन्दगी की बातें,
फिर भी हम समझ गए,
आपकी सब बातें,

मेरी साँसों

मेरी साँसों की लडियां तुम बिन अधूरी हैं,
तुम चले आयो,
मेरी बाहों की कड़ियाँ तुम बिन अधूरी हैं,
तुम चले आओ,


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कृतिका कामरा - 4

कृतिका कामरा Kritika Kaamra


तब समझ पाया,
तेरी सोखी, तेरी अदा का राज़,
जब जान पाया,
ईरानी हसीना के हुश्न का राज़,

सही में कहने वाले ने सही जाँचा है,
आंकने वाले ने सही आँका है,
हुश्न तो ईरान का ही,
इस दुनिया में सबसे बाँका है,

आरजू पूरी हुयी ईरानी हुश्न को देखने की,
आज तुझे जो देखा,
हुश्न की देख, देह से नहीं, रूह से देखने की,
आज तेरी रूह को देखा,

अब पता चला तेरे राज़-ए-हुश्न-का,
हुश्न मशहूर है, दुनिया में ईरान का,

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कृतिका कामरा - 3

कृतिका कामरा Kritika Kamra


जबसे तुझे देखता आ रहा हूँ,
कशिश में खिंचता आ रहा हूँ,
तुझ में एक खिचाव-सा है,
जो किसी और पड़ाव का है,

बहुत सोचा, बहुत ढूँढा,
वजह तक न पहुँचा,
तब कहीं से है जाना,
तू तो है इरानी हसीना,

सुना था किसी से,
इरानी हुश्न का दुनिया में जोर है,
ईरान जैसा हुश्न,
दुनिया में कहीं न और है,

हुश्न के मामले में,
आज भी ईरान ही अव्वल है,
ईरानी हुश्न का,
आज भी दुनिया में बल है,

.

कुछ तो लोग - 10




प्यार अब आपको हुआ है,
दिल आपका उसने छुआ है,
महसूश आपको यूँ हुआ है,
उसे भी कुछ-कुछ हुआ है,

दोनों-के-दोनों उसे छुपा रहे हो,
प्यार जमाने को न बता रहे हो,
पर बहुत पुरानी है एक बात हो,
इश्क-मुश्क छिपाए न छिपते हो,

छुपाने की कोशिश लाख करो,
भले अभी उसे ज़ाहिर न करो,
भांप सब लेते हैं, समझा करो,
भले ही दिल ही दिल में करो,

गली उन्होंने भी यही पार की,
प्यार किया, फिर शादी भी की,
नज़रों से नज़रों के मिलन की,
ये कहानी है सब के जीवन की,

.

कुछ तो लोग - 9



मोहनीश बहल

क्या बात हैं जनाब,
ये क्या से क्या हो गया,
वक्त के साथ-साथ,
बहुत कुछ बदल गया,

याद है आपको,
कहा था कभी,
लड़का-लड़की,
दोस्ती न कभी,

आज दोस्ती कैसे,
तब किसी ने की,
आज खुद ने की,
मन बदला कैसे,

अब रिश्ते की बात,
दोस्ती भी है दोस्त के साथ,
महसूश की ये बात,
मैंने प्यार किया उसके साथ,

एक लड़का और एक लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते - मैंने प्यार किया  

.

शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2011

कत्रीना कैफ - 7

कत्रीना कैफ - Katrina Kaif

तेरे खड़े होने का अंदाज़,
तेरे मुस्कुरानें का अंदाज़,
तेरे देखने का अंदाज़,
तेरे हाथ पकड़ने का अंदाज़,
तेरे बात करने का अंदाज़,
तेरे चलने का अंदाज़,
गर गौर करके देखो,
तेरे अंदाज़ बदलें का अंदाज़,

.

कत्रीना कैफ - 6

कत्रीना कैफ - Katrina Kaif

बजिबे खातून,
तुझे ख़त लिखता रहा,
जवाब न तेरा आया,
पर मैं लिखता रहा,
स्याह हो गयी जिन्दगी,
स्याही से,
तू एक जवाब दे दे,
रोशनाई से,

तेरे बेपनाह हुश्न की तारीफ़ करता हूँ,
तेरे अंदाज़े बयां की तारीफ़ करता हूँ,
तेरी सादगी की तारीफ़ करता हूँ,
तेरी अदायगी की तारीफ़ करता हूँ,

सफ़क रोशनी है,
आखें चुंधिया-सी गयी,
नूर है हुश्न का,
चमक बिजली-सी गयी,

देख न यूँ हुश्न को,
नज़र का लगा यूँ,
ये हुश्न की बेपर्दादारी है,
देख न उसे यूँ,

.

कत्रीना कैफ - 5

कत्रीना कैफ - Katrina Kaif

दस्तूर,
ऐसा तो,
नहीं है,
की,
बिके,
मल्लिका-ए-ख्वाब,
( Dream Girl ),
का,
ख़िताब ( अवार्ड ),
सरे बाज़ार,

देने वाले,
तो हम हैं,
क्यूंकि,
ख्वाबों की,
मल्लिका तो,
तुम हमारी हो,
वो,
क्यूँ हो,
रहे हैं,
इस तरह,
बेजार,

.

कत्रीना कैफ - 4

कत्रीना कैफ - Katrina Kaif

एक अंजुमन,
इतनी उल्फत,
हो गयी है,
तुझसे,
तेरा बिना,
अब रहा,
नहीं जाता,
दूर न जा मुझसे,

जानिब तेरे,
जमाना खड़ा है,
मैं तो अकेला हूँ,
प्यार कर मुझसे,
आगाज़ कर रहा हूँ,
अपने दिल का,
हाल कह रहा हूँ,
तुझसे,

तू आरजू है,
दिल की,
तू जुबान है,
दिल की,
तू धड़कन है,
दिल की,
तू अंजुमन है,
दिल की,
तुझे देखे बिना,
धडकता नहीं,
दिल मेरा,
तू दूर है,
तो क्या,
तेरी तस्वीर से,
बसा,
दिल मेरा,

.

कत्रीना कैफ - 3

कत्रीना कैफ - Katrina Kaif

नागवार गुजरी जिन्दगी,
तेरा दीदार न कर पाया,
तुझे तस्वीरों में तो देखा है,
पर अभी सामने न देख पाया,

मंज़र-ए-हुश्न का तू दरिया है,
डूब भी जाऊं तो मेरा फायदा है,
इश्क का भूत चढ़ गया है,
अब तेरे बिना रहा न गया है,

उल्फत हुई तुमसे,
मुहब्बत हुई तुमसे,
जीने का अंदाज़ आया तुमसे,
न किया कुछ बिना जाने तुमसे,


बरबस ये हुश्न है, ये जवानी है,
तू ताकीद न कर, ये रवानी है,
फ़क्त दिल में उतरी, दीवानी है,
आ मौज कर ले, मस्तानी है,

.

कत्रीना कैफ - 2

कत्रीना कैफ - Katrina Kaif



उफ़ यह तेरा घूरना यह तेरा मुस्कराना,
दिल पर मेरे इस कलम से तेरा लिखना,

जुल्फों के इस साए में समां जाने को जी चाहता है,
आखों कि इस सोखी में समां जाने को जी चाहता है,
तेरी इस अदा पर मर मिटने को जी चाहता है,
तेरी मुस्कराहट में बस जाने को जी चाहता है,

ख्वाबों कि मल्लिका का ख़िताब तुझे मैंने दिया,
तेरी खूबसूरती तेरी अदा का हक़ मैंने अदा किया,
तुझे ग़रूर नहीं है तेरे हुश्न का यह मैंने कह दिया,
तू झांकती है दिल के अन्दर मैंने महसूश किया,

कत्रीना ये तेरा हुश्न है कि, आखों को ताजगी देता,
तेरी खूबसूरती का आलम दिल को सुकून देता,

.

कत्रीना कैफ - 1

कत्रीना कैफ - Katrina Kaif
.
उफ़ ये अदा,
हो गए जिस पर फ़िदा,
न रहा गुमान,
न रहा इमान,

ये जुल्फें ये नजरें,
ये होंठ ये अदा,
ये चेहरा या खुदा,
या खुदा या खुदा,

रब यह कैसी नजाकत है,
रब यह कैसी हुश्न परि है,
रब यह कैसी तुफ्लिश है,
रब यह कैसी मोहब्बत है,

हाय यह तेरा नाज़ुक बदन,
आखों की सोखियों का चमन,
लहराती जुल्फों का दामन,
मदमस्त जावानी की उफन,

.

सुगंधा मिश्रा - 11




तेरे इस नए,
अंदाज़ की,
तारीफ़,
मिलेगी तुझे,

तेरी काबलियत पे,
यकीन,
पक्का है,
मुझे,

तेरा अंदाज़,
अनोखा है,
तुझे आज,
शायरी करते,
देखा है,

इतनी आदयें,
हैं तुझमें,
तेरी अदाकारी,
का फन,
आज देखा है,

कायल हुआ,
घायल हुआ,
आवाज़ के साथ,
अंदाज़ के साथ,
मिमिक्री के साथ,
हंसने के साथ,
हंसाने के साथ,
आदकारी के साथ,
लाज़बाब हुआ,
खुश-ओ-आब हुआ,

.

गौर से देखना

गौर से देखना,
आईना,
कभी चेहरा,
न दिखाता है,

उसमें तो,
भूत का,
अक्श भी,
दिखाई देता है,

भूत के,
पास तो,
जिस्म भी,
न होता है,

आईना,
रूह को,
कंपा,
देता है,

आदमी की,
असली सूरत,
दिखा,
देता है,

तभी तो,
बड़े-बड़े लोग,
आईना न,
देखते हैं,

वो तो,
अपने सजने-सवरने,
के लिए,

गुलाम रख लेते हैं,

भूल से भी,
गर वो,
आईना,
देख लेते हैं,

तभी वो,
अपने में,
झाँक,
लेते हैं,

कितना,
बदल गए,
सोच,
लेते हैं,

बचपन में,
कितने मासूम थे,
अब कितने ...........मीने हो गए,
जान लेते हैं,

यूँ ही,
आईने को,
दोष,
न दो,

उसने,
गर,
हकीकत,
दिखा दी,

तो,
आंशु,
निकल,
आयेंगे,

फिर कभी,
आईने के,
सामने,
न आयेंगे,

.

सुगंधा मिश्रा - 10



अंदाज़-ए-हकरून-ए-अहमक से,
तेरा अंदाज़ बहुत पसंद आया,
तेरी बेहतरीन अदाएगी ने,
पेट पकड़-पकड़ कर बहुत है हंसाया,

.

गुल-ओ-गुलज़ार

गुल-ओ-गुलज़ार थी आखें,
गम-ओ-गम में डूबी हुईं,
आंसुओं की लड़ी थीं,
बेवफाई में पिरोई हुईं,


.

कुछ तो लोग - 8



डॉ. आशुतोष मन ही मन में

वो हड़बड़ी में,
गड़बड़ी कर रहे थे,
कहना कुछ चाह रहे थे,
कह कुछ रहे थे,

इतनी मासूमियत से वो बोलते हैं,
उलझन में न जाने क्या-क्या बोलते हैं,
दिल में उल्फत-सी घोलते हैं,
उलझन में चैन-ओ-अमन खोजते हैं,

.

कुछ तो लोग - 7



डॉ. निधि वर्मा


पहली मुलाक़ात,
बड़ी अजीब-सी थी,
पेश आयी उनसे,
बड़ी करीब-सी थी,

.

कृतिका कामरा - 2



कृतिका कामरा - Kritika Kamra
.
तेरी आवाज़,
तेरी आँखें,
तेरे ओंठ,
तेरे दाँत,

.

कुछ तो लोग - 6



कुछ तो लोग कहेंगे

बहुत फनायत-सी कहानी है,
रूह-ए-फ़ना कर जाती है,
कुछ तो लोग कहेंगे,
कहानी जिन्दगी कह जाती है,

.

कुछ तो लोग - 5



डॉ. निधि वर्मा

हाय दिल घबराता है,
चेहरा न दिखलाया जाता है,
पर क्या करें अब,
हुकुम जो उनका आता है,

.

कुछ तो लोग - 4



डॉ. निधि वर्मा


नज़रें ढूंढ रहीं हैं उन्हें,
जिन्हें देखते ही दिल में,
उल्फत-सी हो जाती है,
रौशनी-सी मिल जाती है,

सामने ही आ गए हैं वो,
नज़रें न भांप पायें मेरी,
चेहरा छिपा लेती हूँ मैं,
देख ही न पायें मुझे वो,

.

कुछ तो लोग - 3



डॉ. निधि वर्मा के लिए
उनकी बेचैनी,
उनकी बेहनतहाई बता रही है,
चुपके-चुपके दिल में,
प्यार जता रही है,

.

कुछ तो लोग - 2


डॉ. आशुतोष मन ही मन में

चेहरा वो छुपा रहे हैं,
दर्द-ए-हाल से,
पर्दा तो हटा दो,
चेहरा-ए-नूर से,

कुछ तो लोग - 1



डॉ. निधि वर्मा - कृतिका कामरा

.
ये बेचैनी है किसलिए,
जरा नैन से नैन तो मिलाओ,
नज़र दूर है किसलिए,
ज़रा चेहरा तो उठाओ,

.

कृतिका कामरा - 1



कुछ तो लोग कहेंगे
कृतिका कामरा - Kritika Kamra

.
तेरी मासूमियत,
मैं पहले दिन ही भांप गया था,
जब तुझे तेखते ही,
मेरा दिल कांप गया था,

.

हमसे तन्हाई

हमसे तन्हाई में,
मिला तो करो,
गुफ्तगू-ए-आलम,
कुछ करा करो,


.

सफा-ए-मोहब्बत

सफा-ए-मोहब्बत-ए-आजम की सुनाई थी,
वफ़ा-ए-आरजू आरजू आज सुनाई थी,
दिल सारा भीग गया था अब,
जब कहानी मजनू-ए-लैला सुनाई थी,


.

गुरुवार, 6 अक्टूबर 2011

आप वहाँ

आप वहाँ,
अपने दिल को,
थाम,
बैठे हो,

हम यहाँ,
अपने दिल को,
थाम,
बैठे हैं,

कुछ शाम,
आप,
गुज़ार,
लेते हो,

कुछ शाम,
हम,
गुज़ार,
लेते हैं,

यूँ ही,
दिन-रात,
आप,
काट,
लेते हो,

यूँ ही,
दिन-रात,
हम,
काट,
लेते हैं,

आप,
हमें,
याद,
कर लेते हो,

हम,
आपको,
याद,
कर लेते हैं,

हमारी धड़कने,
आप,
सुन,
लेते हो,

आपकी धड़कने,
हम,
सुन,
लेते हैं,

हमारे,
दिल से,
आप,
जी,
लेते हो,

आपके,
दिल से,
हम,
जी,
लेते हैं,

हमारे,
इंतज़ार में,
आप,
बैठे हो,

आपके,
इंतज़ार में,
हम,
बैठे हैं,


.

इन अँधेरे

इन अँधेरे पलों को उजाले से भर दूँ,
चन्द यादें तेरी जहन में ताज़ा कर लूँ,


.

गम-ए-महफ़िल

गम-ए-महफ़िल में,
हमें भी,
शामिल,
कर लो,

यारों,
आज
उसकी याद,
बहुत सताती है,

वो इधर,
फिर उधर से,
न जाने,
कहाँ-कहाँ से,
सताती है,

उसकी यादों से,
भरा है,
जहन मेरा,
उसी से निकल-निकल,
कर सताती है,

बहुत प्यार है,
उसे मुझसे,
फिर भी,
न जाने,
क्यूँ,
सताती है,

तुझे भुलाकर

तुझे भुलाकर,
भुला न सके,
तू याद,
दिन-रात आती है,

निगाह,
खुली रखो,
की बंद,
तू ही बस,
नज़र,
आती है,

मेरी तन्हाई में,
मेरी रुखाई में,
बिन बुलाई,
चली आती है,

भगाना,
चाहता हूँ,
तुझे,
तू लौट-लौट,
आती है,

तेरे बिना,
जीना सीख लिया,
क्या यही,
देखने आती है,

तेरी याद में,
रो रहा हूँ,
क्या यही,
देखने आती है,

ऐसे-ऐसे,
वक्त,
वेवक्त चली,
आती है,

बात सही है,
मुझे,
तेरी याद,
बहुत,
आती है,

तू न,
अब,
दिल से,
जाती है,

पल-पल,
तू,
याद,
आती है,

आप न आये

आप न आये,
महफ़िल में,
बात,
किससे करें,

मसरूफ हैं,
अपने-अपनों में,
बात,
किससे करें,

बैठे हैं,
तन्हा,
महफ़िल में,
बात,
किससे करें,

निगाहें,
टेके हैं,
दर पे,
बात,
किससे करें,

इंतज़ार हैं,
आपका,
कर रहे,
बात,
किससे करें,

हो गए हैं,
मायूस,
अब,
बात,
किससे करें,

जा रहे,
महफ़िल से,
अब,
बात,
किससे करें,

दिल लगाते

जो दिल लगाते हैं,
चोट-ए-दिल खाते हैं,
तुम क्या जानो,
कैसे दिल लग जाते हैं,

तन्हा-तन्हा-सी जिन्दगी में,
फूल जब खिल जाते हैं,
उडती-उडती-सी महक से,
दिल खुद-ब-खुद लग जाते हैं,

करना क्या इसमें, कुछ भी तो नहीं,
नज़र से नज़र बस मिलाते हैं,
नज़रों से दिल में उतर जाते हैं,
धड़कन से धड़कन बस मिलाते हैं,

दर्द उसको नहीं मुझको होता है,
जब दिल से दिल मिल जाते हैं,
बचके हमको चलना पड़ता है,
नहीं तो चोट वो खाते हैं,

तो ऐसे दिल मिलाते हैं,
नज़रों से दिल मिलाते हैं,
तरर्न्नुम में फिर गाते हैं,
सबको पसंद आते हैं,



.

ऐसी तन्हाई

ऐसी तन्हाई,
वक्त कितना धीरे-धीरे,
खिसकता है,

गम की भरपाई,
गम के बोझ से आगे न,
सरकता है,


.

है कयासे

है कयासे अब हुस्न के लगाए कैसे जाते हैं,
न जाने इस जमाने में दिल मिलाये कैसे जाते है,

है बहुत दूर जिन्दगी अब उससे,
वो जिन्दगी में बुलाये कैसे जाते हैं.

जो वो नहीं है वही होने की कोशिश करते हैं,
जिन्दगी में वो भुलाए कैसे जाते हैं,


.

मंगलवार, 4 अक्टूबर 2011

अब तो तुमसे

अब तो तुमसे,
यूँ ही गुफ्तगू होगी,
पता न चलेगा,
दिन कब कटेगा,
रात कब होगी,


.

जहमत-ए

जहमत-ए-उनाकत से, उल्फत तो कर ली,
बेचैनी-सी बढती है, क्यूँ ये फनाकत कर ली,


.

वो आ रहें

वो आ रहें हैं,
दिल धडक रह है,
हाय सिहरन-सी,
दौड़ रही है,

लेती रहूँ बस,
उठ के कैसे बैठूं,
आँख से आँख,
मिलाऊं कैसे,


.

इश्क-ए-हारूफ़

इश्क-ए-हारूफ़ हुआ,
नूर-ए-हुश्न से,
ख्यालात-ओ-जहन हुआ,
इश्क-ए-दरिया से,


.

जब बज़्म

जब बज़्म दिल में सजने लगे,
नगमे पे नगमे निकलने लगें,
नज़्म पे नज़्म गाने लगें,
गजल पे गजल आने लगे,
हर तरफ मौशिकी बजने लगे,
समझना अब दिल लगने लगे,


.

किस्मत-ए

किस्मत-ए-जहान में,
किस-किस से मिला देता है,
जिनसे न मिलने की उम्मीद हो,
उनसे भी मिला देती है,

.

कायनात-ए

कायनात-ए-हुश्न की,
आज रुखी-रुखी सी लगती है,
जुल्फें बिखरी हैं, चेहरा ज़र्द है,
कुछ उखड़ी-उखड़ी से लगती है,


.

साफ़-ए-ज़ुल्म

साफ़-ए-ज़ुल्म-ओ-हकीकत,
अब ज़ेबा-ज़ेबा से होती है,
जो मोहब्बत करता है,
उसे नसीहत नसीब होती है,


.

जहर-ओ-जमानते

जहर-ओ-जमानते फ़कीनियत,
अज-ओ-अमुनते अजनियत,
दौर-ए-दयाये दयीनियत,
अबकाए महकाए महीनियत,


.

यूँ ही न

यूँ ही न बैठो सियाफने में,
उठो कुछ गौर करो,
कितना हुश्न, यूँ ही बेकरार है,
चलो और दिल्लगी करो,


.

यूँ ही जिखनख़त

यूँ ही जिखनख़त की आशिक,
पूछती है सरे बाज़ार,
क्या हुश्न चला गया मेरा,
क्या मैं हुयी बेज़ार,

.

हालात-ए-आनुम

हालात-ए-आनुम,
माज़रा क्या है,
कोई वजह तो बताओ,
काज़रा क्या है,


.

सही कहा

सही कहा है, कहने वाले ने,
बिन इश्क के कोई रह नहीं सकता,
इस जहान में हर शख्स,
इश्क किये बिन जी नहीं सकता,


.

अक से

अक से,
अकीयत से, 
न नुसरत से,
नसीहत से,

सबे खताए,
हो गयी है,
तो,
जुस्तुजू कैसे करें,

अब-ए-दयाये,
तो होने दे,
फिर,
मुस्तफ़नू करें,


.

ज़र-ओ-ताबीर

ज़र-ओ-ताबीर-ओ-तुरबत,
आकियाना बना लो,
न छोड़ो अब जहाँ,
आशियाना बना लो,


.

कितना आकिद

कितना आकिद-दार हुश्न है,
नज़र न लगे इसे,
क्यूँ यूँ तन्हा घूमता है,
इश्क न लगे इसे,


.

गिरे गिर

गिरे गिर-ए-बान-ए-इकरत से,
न देख इस फितरत से,
तेरे जहन में क्या है,
बता दे अब फुरसत से,

.



रंगीन, हसीन

रंगीन,
हसीन,
शामें,
खो-सी,
गयी हैं,

लगता है,
वो,
यहाँ,
आना,
भूल-सी,
गयी हैं,

.



वो पूछ

वो पूछ बैठे हमसे,
फिर कब मिलोगी,
अब क्या कहूँ उनसे,
अब न मिलोनी होगी,


.

निकली आह

निकली आह,
दिल से,
आंशुओं में,
तर होकर,

चेहरा छुपा रहे,
अपना,
बाजुओं से,
ढककर,


.

साफे गम

साफे गम-ए-हालात दिल के,
तुझे क्या बताऊँ,
तू तो खुश रह ले,
कम से कम तुझे क्यूँ रुलाऊँ,


.

हम साया

हम साया खातून-ए-मोहब्बत से,
इज़हार-ए-इश्क करता हूँ,
इकरार कर ले इसको,
तुझे बेपनाह मोहब्बत करता हूँ,

.

लखनवी अंदाज़

लखनवी अंदाज़-ओ-महलत से,
महक आती है,
अदावत का ज़माना है यहाँ,
अदावत यहाँ बिन सीखे ही आती है,

अदब-ओ-हक़ का,
मंज़र यहाँ ज़र्रे-ज़र्रे में है,
आती अदावत की खुशबू
यहाँ ज़र्रे-ज़र्रे में है,


.

सँभालते-सँभालते

सँभालते-सँभालते,
कितना और सँभालोगे,
छोड़ दो सब,
कितना गम और पालोगे,


.

आग-ए-दरिया

आग-ए-दरिया,
न ढूढ़,
ये क्या,
कम है,

जिन्दगी जीने में,
निकल जाए,
यही तो,
असली दम है,


.

ये गुलाब

ये गुलाब-ओ-अहमक,
अब महकती-सी अच्छी लगती है,
हिजाब-ओ-सहमक,
अब उतरती-सी अच्छी लगती है,

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वक्त जाता

वक्त जाता था,
घडी दो घडी को याद आती थी,
क्यूँ छोड़ा उसने,
पता नहीं की क्या गुस्ताखी थी,

.



इश्क एक

इश्क एक जानिब,
आशिक को नमूना बना देता है,
नाम उनका हो जाता है,
आशिक पुकारता जो रहता है,

 .






जुबान-ए-ज़ुरबत

जुबान-ए-ज़ुरबत पूंछते हैं,
तुमने मोह्बात क्यूँ की,
पता न था ये हालत हो जायेंगे,
फिर ये सोहबत क्यूँ की,

.



है फ़ना

है फ़ना-ए-जो-मोहब्बत महरूम से,
टूटती आहों से सहारा दे-दे,
उससे मोहब्बत कर ले,
उसको किनारा दे-दे,


.

कितनों दिन

कितनों दिन के बाद,
कोई इजरत-ए-इश्क में,
मिटने आया है,
देख तो लेने दे,
किसको इश्क ने सताया है,

.



आहें भी न

आहें भी न भरें,
आँशु भी रोक लें,
चेहरा भी ज़र्द न हो,
तो कौन कहेगा
की हमने,
किसी बेवफा का,
दर्द झेला है,

सब तो,
कुछ और,
समझेंगे,
सोचेंगे,
कोई,
बेगैरत,
झमेला है,

.


सुगंधा मिश्रा - 9



तेरे इस नए,
अंदाज़ की,
तारीफ़,
मिलेगी तुझे,

तेरी काबलियत पे,
यकीन,
पक्का है,
मुझे,

तेरा अंदाज़,
अनोखा है,
तुझे आज,
शायरी करते,
देखा है,

इतनी आदयें,
हैं तुझमें,
तेरी अदाकारी,
का फन,
आज देखा है,

कायल हुआ,
घायल हुआ,
आवाज़ के साथ,
अंदाज़ के साथ,
मिमिक्री के साथ,
हंसने के साथ,
हंसाने के साथ,
आदकारी के साथ,
लाज़बाब हुआ,
खुश-ओ-आब हुआ,


.

हालात-ए-गम

हालात-ए-गम क्या कहें, बस यूँ ही चुप रहें,
आखों से टक-टकी लगी रहे, न ही कुछ कहें,
गुमसुम से अनजान रास्तों पर टहला करें,
न अब किसी के दिल से दिल मिलाया करें,

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हंसिका मोटवानी - 1

हंसिका मोटवानी Hansika Motwaani

तू बहुत निखर गयी है, शबाब-ए-हुश्न से लद गयी है,
वक्त के साथ-साथ या खुदा कितनी सुन्दर हो गयी है,

क्या अदा है, मेरी जान, तुझ पर फब्ती है,
तेरी जुल्फों में, तेरी आखों में वो मस्ती है,

चड़ी हुई आखें, कुछ कह रही हैं,
वो यहाँ नहीं, किसी और मकाँ की खबर दे रही हैं,

इतनी निखर जाओगी, इतनी हसीन हो जाओगी,
सोचा न था ख्वाब में, यूँ ही सबको पसदं आओगी,

तेरे यूँ देखने से, तुझ पर फ़िदा हो गया,
तेरे बिना रहा नहीं जाता, ये क्या हो गया,

आय हाय, इस तरह से अगर यूँ ही हंस देगी,
खुदा कसम, अपनी किस्मत यूँ ही खोल देगी,
 

.

जहान-ए-जबरूयिअत

जहान-ए-जबरूयिअत, खुनस्ती से इश्क हुआ क्यूँ कर,
अक्र-या-देय, हुन्फ्फर-ए-म्यकान, फिर छोड़ा क्यूँ कर,

.

हैं तिबख्दत

हैं तिबख्दत-ए-मसकूयित में, सहमे-सहमे से जनाब,
फिर इश्क क्यूँ किया, जब न गम न झेल सके जनाब,

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जईफ्ता-जईफ्ता

जईफ्ता-जईफ्ता अफ़साने मोहब्बत के, बनते ही जाते हैं,
कितने दीवाने, इस सर-ए-आह में गुल खिलते ही जाते हैं,

.



किसे हमदम

किसे हमदम बनाऊं, किसे साहिल बनाऊं,
किसे ज़ाफ़रान-ए-मोहब्बत अब तो बनाऊं,
कुछ महसूश नहीं होता, दिल ये खलूस में,
खाली-खाली तन्हा रहता, अपने मकूश में,

.

हकीकत-ए-ज़फ्लाहत

हकीकत-ए-ज़फ्लाहत से कुछ तन्हाई में रहने दे,
यूँ पंखा भी न चला, पसीने में नहाई अब रहने दे,

.



दिल लगा

दिल लगा था, तभी दिल की लगी थी,
इधर मेरे, उधर तेरे दिल की लगी थी,
तुझे लगा की दिल्लगी मैंने की थी,
शामिल तो तू भी अपने दिल से थी,

बिना कश्ती के समंदर में आ गयी थी,
याद न रहा, कि लहरों पर चल रही थी,
वफ़ा तो तुने बीच समंदर में छोड़ी थी,
मेरे पैरों के नीचे तो वफ़ा कि लहरें थीं,

खड़ा हूँ अभी भी वहीं, तू देख न रही थी,
वफ़ा तो तुने छोड़ी, तू तभी डूब रही थी,
ले हाँथ देता हूँ, तू क्यूँ सिमट रही थी,
आगोश में आजा, क्यूँ न लिपट रही थी,

भरोसा न रहा तुझे मेरा, बात लग रही थी,
तभी तो तू वफ़ा को छोड़, उलहना दे रही थी,
मुझे छोड़, किश्ती पर भरोसा कर रही थी,
क्या तेरी निगाह किश्तवान से लग रही थी,




गले में

गले में हाथ था, लिपटी हुयी थी मुझसे,
फिर भी कहती है की, दूर थी तब तुझसे,
तो क्या वो सिमट जाना,
सरे आम लिपट जाना,
मेरे आगोश में आ जाना,
एक सिफ्कन थी, जाना,
माने दिल से तिल भर की दूरी थी,
आज पता चला, क्यूँ मुझसे दूरी थी,

.

तभी दस्तक हुयी

तभी दस्तक हुयी,
तैयार नहीं हुयी,
बारात आने को हुयी,
तू क्या दुल्हन हुयी,

क्या पता उनको,
दुल्हे के दोस्त से,
उस दिन कुछ,
नज़र लड़ गयी थी,
उसी के लिए,
तो इतना सज,
सँवर रही थी,

शादी का माहोल था,
ढूंढ उसे रही थी,
तभी दूल्हे की,
बहिन ने,
परिचय किसी से,
करवाया,

इनसे मिलिए,
ये हैं मेरी भाभी,
मैं चोंकी,
वो बोली,

नहीं-नहीं,
जो भैया,
के दोस्त हैं न,
ये हैं उनकी,
घरवाली,

अब क्या कहूँ,
दर्द को छिपाया,
मुस्करा कर,
हाथ मिलाया,


.


कितना तन्हा

कितना तन्हा,
वो लग रहा है,
बड़ा उदास,
वो लग रहा है,

जानती हूँ उसे,
देखता है,
खिड़की से,
रोज़ वो मुझे,

शायद कोई,
बात हो,
क्या पता,
क्या बात हो,

जा नहीं सकती,
उसके पास,
उससे कुछ,
कह नहीं सकती,

लड़की हूँ न,
जमाना देखता है,
कुछ हो न,
रोटियाँ सकता है,

.

इन कल्पनाओं

इन कल्पनाओं की,
उडान को,
किस डोर से,
मैं थामू,

अनंत आकाश के,
मन में,
इधर-उधर,
उड़ रहीं हैं,

रोकूँ तो,
कैसे रोकूँ,
रुक न,
रहीं हैं,

इस कल्पनाओं की...........


.

गजब-ए-हक्त

गजब-ए-हक्त, ये फ़क्त तुने लिख दिया,
लफ़्ज़ों से बयाँ, लिख-ए-हकीकत दिया,
आरजू-ए-दिल, सब सामने रख दिया,
खुदा से आरजू, आपने, अपनी कह दिया,

सोमवार, 3 अक्टूबर 2011

इतनी बेशर्म

इतनी बेशर्म निगाह,
घूरते ही,
जा रही है,
शर्म उसको,
न आ रही है,

मुझमें उसने,
क्या देखा,
जो सरे बाज़ार,
दीवाना हो गया,

मैं तो कुछ,
ख़ास नहीं हूँ,
फिर भी दीवाना,
हो गया,

नज़र मेरी भी,
न हट रही अब,
सोच उसी,
के बारे में,
रही अब,

वो तो,
देखते ही,
जा रहा है,
नज़र अब भी,
न हटा,
रहा है,

कुछ तो करूँ,
कैसे यहाँ,
से हटूँ,

नहीं तो,
बदनाम कर देगा,
सरे बाज़ार,
नाम कर देगा,

पर उसकी,
वो कशक,
दीवाना-सा,
कर गयी,

उसकी वो नज़र,
उस पर,
मैं मर गयी,


.

किसी से

किसी से,
कैसे कहें,
की तुमसे,
मोहब्बत करते हैं,

यह तो,
बेशर्मी होगी,
कहें की,
तुम पे ही,
मरते हैं,

तो क्या,
नज़र,
कह न सकेगी,
सीधे दिल में,
उतर न सकेगी,

ओंठों को क्यूँ,
इसमें शामिल करें,
जब दिल-से-दिल की,
बात होने लगेगी,


.

रविवार, 2 अक्टूबर 2011

चन्द्रमुखी चौटाला - 2


चन्द्रमुखी चौटाला
कविता कौशिक
Kavita Kaushik

इतनी संजीदगी,
इतनी आतिफ-ए-आलब्दारी,
तुझे देखते ही,
चली जाती है,
सबकी हुसयारी,

घनी बात कहनी है थारे से,
सपनों में मिलनी है थारे से,
पर डर लागे है थारे से,
सोचा न जाए मारे से,
के बोलूँ इब थारे से,

यूँ तन्ने रोज़ टी. वी. पे,
देखता रहूँ,
तेरे जैसा सब पे,
मेरा भी रुआब हो,
सोचता रहूँ,

तेरी छोट्टी-छोट्टी बातें,
कितना घना ज्ञान दे जावें,
तभी तो सारी जणता,
अपने कुणबे के साथ,
तुझे देखने टी. वी. पे आवें,

  .

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