चन्द इशहार
इश्क में हारे हुए के, चन्द जख्म, कुरेदते रहते हैं, न लगाते मरहम,
गुरुवार, 20 अक्टूबर 2011
सुफन जब
सुफन जब कुफन बन जाती है, न जाने क्या-क्या बयाँ कर जाती है,
जो छिपाना होता है, सभी से दिल-ए-हाल वो भी यूँ बयाँ कर जाती है,
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