गुरुवार, 13 अक्टूबर 2011

कुछ निगाहें उनकी

कुछ निगाहें उनकी,
दूरी-दूरी बना रही थी,
पास आने से,
कतार रहीं थीं,

दूर से निगाह भी,
न मिला रहीं थीं,
दूर-दूर ही वो,
चली जा रही थीं,

सोचो,
मंज़र-ए-हकीक,
क्या गुजरी होगी,
मेरे दिल पर,

जो रोज़ आगोश में,
मचलती थीं,
आज दूर से ही,
निकलना चाहती थीं,

जाते हैं,
वजह को,
तलाशते हैं,

क्यूँ दूर-दूर,
ये,
मुगालते हैं,


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