शनिवार, 15 अक्टूबर 2011

खफा ओ

खफा ओ हमसे हो गए, नाराज़ भी हैं हमसे,
खता बस इतनी है की, तारीफ़ उनकी है की,

खुश उन्हें कैसे करें, सोच रहें हैं यही,
खता की सजा कबूल है, बात है सही,

हमको अंदेशा था, इस बात का, नाराज़ ओ हो जायेंगे,
खुश होने के साथ-साथ, दीवाना हमको समझ जायेंगे,

गर दीवाने दिमाग से चलते, तो दीवाने कैसे होते,
दीवानगी के किस्से, दुनिया में मशहूर ही न होते,

खता दीवानों की, नज़र अन्दाज़ की जाती है,
उनकी दीवानगी, नज़र किसी को न आती है,

हँसते हैं सब, दुनिया में दीवानों की बातों पर,
सजते हैं सब, मुशायरे दीवानों की बातों पर,

खुश हों आप, पुल-ए-तारीफ़ बाँधे,
खफा यूँ हुए, हमारे ही हैं हाँथ बाँधे,

हमें अपनी दीवानगी से है मतलब, खुश आपको कर जायेंगे,
औकात जानते हैं अपनी, आपके पास तक न फटक पायेंगे,

आपको देखकर चन्द जुमले यूँ ही निकल आते हैं,
दिल का बोझ इस तरह आपके पास उतार आते हैं,

बात और कुछ नहीं है, आपसे वफ़ा नहीं हैं,
हमारी दिल-ए-दिलबर और हैं,
वफ़ा उससे पूरी है,
आपकी अदाकारी-ए-अदावत से सीख ली पूरी है,

जिन्दगी के बहुत से झमेलों को आप जिस अदा से झेल जाती हैं,
आपकी यही अदा हमको भाती है, सीख दुनिया की मिल जाती है, 

गर आपको नाराजगी है इतनी, तारीफ़ यूँ न करेंगे,
दिल-ही-दिल में रखेंगे, और बस किसी से न कहेंगे,

बस नाराजगी आप दूर करो, हमारा बोझ दूर करो,
हम यह नहीं चाहते की, आप हमसे यूँ नाराज़ रहो,

खता की सजा दो की, माफ़ी, है आपके ऊपर छोड़ा,
पर गुज़ारिश एक आपसे, हमारे बीच न आये रोड़ा,

अब लेता हूँ विदा, कहता हूँ अब अलविदा,
रोज़ आपको देखूँगा, सीख तो आपसे लूँगा,

गुस्ताखी कर यूँ परेशान, न करूंगा,
दिल की बात, दिल में ही रख लूँगा,

कागज़ पर कलम से लिख लूँगा,
ब्लॉग पर यूँ कमेन्ट न लिखूंगा,

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