मंगलवार, 4 अक्टूबर 2011

दिल लगा

दिल लगा था, तभी दिल की लगी थी,
इधर मेरे, उधर तेरे दिल की लगी थी,
तुझे लगा की दिल्लगी मैंने की थी,
शामिल तो तू भी अपने दिल से थी,

बिना कश्ती के समंदर में आ गयी थी,
याद न रहा, कि लहरों पर चल रही थी,
वफ़ा तो तुने बीच समंदर में छोड़ी थी,
मेरे पैरों के नीचे तो वफ़ा कि लहरें थीं,

खड़ा हूँ अभी भी वहीं, तू देख न रही थी,
वफ़ा तो तुने छोड़ी, तू तभी डूब रही थी,
ले हाँथ देता हूँ, तू क्यूँ सिमट रही थी,
आगोश में आजा, क्यूँ न लिपट रही थी,

भरोसा न रहा तुझे मेरा, बात लग रही थी,
तभी तो तू वफ़ा को छोड़, उलहना दे रही थी,
मुझे छोड़, किश्ती पर भरोसा कर रही थी,
क्या तेरी निगाह किश्तवान से लग रही थी,




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