शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2011

गौर से देखना

गौर से देखना,
आईना,
कभी चेहरा,
न दिखाता है,

उसमें तो,
भूत का,
अक्श भी,
दिखाई देता है,

भूत के,
पास तो,
जिस्म भी,
न होता है,

आईना,
रूह को,
कंपा,
देता है,

आदमी की,
असली सूरत,
दिखा,
देता है,

तभी तो,
बड़े-बड़े लोग,
आईना न,
देखते हैं,

वो तो,
अपने सजने-सवरने,
के लिए,

गुलाम रख लेते हैं,

भूल से भी,
गर वो,
आईना,
देख लेते हैं,

तभी वो,
अपने में,
झाँक,
लेते हैं,

कितना,
बदल गए,
सोच,
लेते हैं,

बचपन में,
कितने मासूम थे,
अब कितने ...........मीने हो गए,
जान लेते हैं,

यूँ ही,
आईने को,
दोष,
न दो,

उसने,
गर,
हकीकत,
दिखा दी,

तो,
आंशु,
निकल,
आयेंगे,

फिर कभी,
आईने के,
सामने,
न आयेंगे,

.

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