बुधवार, 19 अक्तूबर 2011

वो कुछ न

वो कुछ न कह रहे थे, होंठ उनके चुप लग रहे थे,
वो बस देख रहे थे, कसक-सी पैदा कर रहे थे,

उनको कैसे अहसास हुआ, मेरे दिल दिल में खास हुआ,
देख वो हमें रहे थे, निगाह न हम उनसे फेर रहे थे,

ये निगाह-निगाह मिलाने का सिलसिला, क्या सितम ढाता है,
जब निगाह मिले किसी से तो समझ में, आता है,

अब वो पास आ रहे थे, हम ठिठके जा रहे थे,
होश भी नहीं हमको, उनमें समाते जा रहे थे,

.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें