इतनी बेशर्म निगाह,
घूरते ही,
जा रही है,
शर्म उसको,
न आ रही है,
मुझमें उसने,
क्या देखा,
जो सरे बाज़ार,
दीवाना हो गया,
मैं तो कुछ,
ख़ास नहीं हूँ,
फिर भी दीवाना,
हो गया,
नज़र मेरी भी,
न हट रही अब,
सोच उसी,
के बारे में,
रही अब,
वो तो,
देखते ही,
जा रहा है,
नज़र अब भी,
न हटा,
रहा है,
कुछ तो करूँ,
कैसे यहाँ,
से हटूँ,
नहीं तो,
बदनाम कर देगा,
सरे बाज़ार,
नाम कर देगा,
पर उसकी,
वो कशक,
दीवाना-सा,
कर गयी,
उसकी वो नज़र,
उस पर,
मैं मर गयी,
.
घूरते ही,
जा रही है,
शर्म उसको,
न आ रही है,
मुझमें उसने,
क्या देखा,
जो सरे बाज़ार,
दीवाना हो गया,
मैं तो कुछ,
ख़ास नहीं हूँ,
फिर भी दीवाना,
हो गया,
नज़र मेरी भी,
न हट रही अब,
सोच उसी,
के बारे में,
रही अब,
वो तो,
देखते ही,
जा रहा है,
नज़र अब भी,
न हटा,
रहा है,
कुछ तो करूँ,
कैसे यहाँ,
से हटूँ,
नहीं तो,
बदनाम कर देगा,
सरे बाज़ार,
नाम कर देगा,
पर उसकी,
वो कशक,
दीवाना-सा,
कर गयी,
उसकी वो नज़र,
उस पर,
मैं मर गयी,
.
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