सोमवार, 3 अक्टूबर 2011

इतनी बेशर्म

इतनी बेशर्म निगाह,
घूरते ही,
जा रही है,
शर्म उसको,
न आ रही है,

मुझमें उसने,
क्या देखा,
जो सरे बाज़ार,
दीवाना हो गया,

मैं तो कुछ,
ख़ास नहीं हूँ,
फिर भी दीवाना,
हो गया,

नज़र मेरी भी,
न हट रही अब,
सोच उसी,
के बारे में,
रही अब,

वो तो,
देखते ही,
जा रहा है,
नज़र अब भी,
न हटा,
रहा है,

कुछ तो करूँ,
कैसे यहाँ,
से हटूँ,

नहीं तो,
बदनाम कर देगा,
सरे बाज़ार,
नाम कर देगा,

पर उसकी,
वो कशक,
दीवाना-सा,
कर गयी,

उसकी वो नज़र,
उस पर,
मैं मर गयी,


.

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