सोमवार, 24 अक्टूबर 2011

कहने को

कहने को तो जिन्दगी में है, बहुत कुछ,
जब बात जुबां न आए तो क्या कहें कुछ,


.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें