रविवार, 2 अक्टूबर 2011

चन्द्रमुखी चौटाला - 2


चन्द्रमुखी चौटाला
कविता कौशिक
Kavita Kaushik

इतनी संजीदगी,
इतनी आतिफ-ए-आलब्दारी,
तुझे देखते ही,
चली जाती है,
सबकी हुसयारी,

घनी बात कहनी है थारे से,
सपनों में मिलनी है थारे से,
पर डर लागे है थारे से,
सोचा न जाए मारे से,
के बोलूँ इब थारे से,

यूँ तन्ने रोज़ टी. वी. पे,
देखता रहूँ,
तेरे जैसा सब पे,
मेरा भी रुआब हो,
सोचता रहूँ,

तेरी छोट्टी-छोट्टी बातें,
कितना घना ज्ञान दे जावें,
तभी तो सारी जणता,
अपने कुणबे के साथ,
तुझे देखने टी. वी. पे आवें,

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