मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

तभी दस्तक हुयी

तभी दस्तक हुयी,
तैयार नहीं हुयी,
बारात आने को हुयी,
तू क्या दुल्हन हुयी,

क्या पता उनको,
दुल्हे के दोस्त से,
उस दिन कुछ,
नज़र लड़ गयी थी,
उसी के लिए,
तो इतना सज,
सँवर रही थी,

शादी का माहोल था,
ढूंढ उसे रही थी,
तभी दूल्हे की,
बहिन ने,
परिचय किसी से,
करवाया,

इनसे मिलिए,
ये हैं मेरी भाभी,
मैं चोंकी,
वो बोली,

नहीं-नहीं,
जो भैया,
के दोस्त हैं न,
ये हैं उनकी,
घरवाली,

अब क्या कहूँ,
दर्द को छिपाया,
मुस्करा कर,
हाथ मिलाया,


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