सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

उसे न हँसता

उसे न हँसता हुआ देखा,
उसे बस उदास-सा देखा,
चेहरे की रोनक खो-सी गयी है,
कोई हूर-सी दिल तोड़ गयी है,

तन्हाई को उसने अपना लिया है,
रोशनाई को उसने छोड़ दिया है,
अब हर नज़र उसे जला-सी जाती है,
अब हर निगाह उसे रुला-सी जाती है,

नज़रें मिलाने से डरने लगा है,
किसी पर न अब मरने लगा है,
दूर-दूर हसीनाओं से रहने लगा है,
करीब न किसी को सहने लगा है,

आज चेहरा खिला था उसका,
महबूब नया मिला था उसका,
तभी फोन सहेली का आया,
आज न आ सकूंगी बताया,

उसने कल का फ़साना दिखाया,
फोन पर उसका फोटो दिखाया,
जिससे कल मिल कर है आई,
राज़ उसके खिले चेहरे का पाई,

यहाँ दिलों के खेल में, बातें ऐसी बेसुमार होती हैं,
जिन पर हो निगाह, वही अपने खास की होती हैं,

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