सुबकते-सुबकते कब सुबह हो गयी, पता न पड़ा,
जागते-जागते कब नींद लग गयी, पता न पड़ा,
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सोमवार, 29 अगस्त 2011
तेरी चाहत
तेरी चाहत का उसे क्या पता,
अपनी चाहत का भरोसा था,
टूट गया उसका दिल |
जब उसे तुने छोड़ा था |
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अपनी चाहत का भरोसा था,
टूट गया उसका दिल |
जब उसे तुने छोड़ा था |
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दानिशे वक्त
दानिशे वक्त की तन्हाईओं से, कोई मुझे निकाल ले,
यूँ ले चल अपने संग, इस घूमते वक्त को संभाल ले,
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यूँ ले चल अपने संग, इस घूमते वक्त को संभाल ले,
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ज़ुरूर-ए-हुश्न
न ज़ुरूर-ए-हुश्न की, न पैमाईश की थी,
इरादा-ए-इश्क में, न फरमाईश की थी,
वो तो यूँ ही रुसवा हो गए, फ़क्त की वो,इरादा-ए-इश्क में, न फरमाईश की थी,
न जाने क्या सुना,हमसे दूर हो गए वो,
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तो तन्हा
कोई तो तन्हा था, इस दुनिया में,
कोई तो रुसवा था, इस दुनिया में,
कोई तो थमा था, इस दुनिया में,
कोई तो फासिब था, इस दुनिया में,
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कोई तो रुसवा था, इस दुनिया में,
कोई तो थमा था, इस दुनिया में,
कोई तो फासिब था, इस दुनिया में,
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इख्लायियत में
इख्लायियत में मैंने,
गुस्ताखी क्या कर दी,
तू क्यूँ दूर-दूर रहती,
ऐसी क्या बदमाशी कर दी,
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गुस्ताखी क्या कर दी,
तू क्यूँ दूर-दूर रहती,
ऐसी क्या बदमाशी कर दी,
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वक्त भुला
वक्त भुला देता है गम को,
पर पल को न भुला पाता,
जब भी तन्हा-सा लम हो,
वो पल पल-पल याद आता,
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पर पल को न भुला पाता,
जब भी तन्हा-सा लम हो,
वो पल पल-पल याद आता,
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रविवार, 28 अगस्त 2011
निगाहों से
निगाहों से गर क़त्ल किया, तो फरियाद कैसे करेंगे |
आहों से जो क़त्ल किया, मेरी जान आहें कैसे भरेंगे |
Nigahon Se Gar Katl Kiya, To Fariyad Kaise Karenge,
Aahon Se Jo Katl Kiya, Meri Jaan Aahen Kaise Bhagenge,
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आहों से जो क़त्ल किया, मेरी जान आहें कैसे भरेंगे |
Nigahon Se Gar Katl Kiya, To Fariyad Kaise Karenge,
Aahon Se Jo Katl Kiya, Meri Jaan Aahen Kaise Bhagenge,
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हर घडी
हर घडी यूँ, वक्त को देखता रहा,
वो न आये, वक्त यूँ काटता रहा,
आज क्या बात हुयी, न उनके आने की,
जाने क्या वजह हुयी, उनके न आने की,
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वो न आये, वक्त यूँ काटता रहा,
आज क्या बात हुयी, न उनके आने की,
जाने क्या वजह हुयी, उनके न आने की,
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चाँद से
चाँद से क्यूँ पूछते हो, चिरागों को क्यूँ जलने दें,
रौशनी तेरी है बहुत, बैरागों को क्यूँ मचलने दें,
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रौशनी तेरी है बहुत, बैरागों को क्यूँ मचलने दें,
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यूँ खुलाशा
यूँ खुलाशा गर करने लगें तो बहुत से दिल टूट जायेंगे,
बहुत हमसे रूठ जायेंगे, बहुत से घर यूँ ही टूट जायेंगे,
इसलिए रहते हैं, यूँ न होने देते हैं, पर्दा-ए-फास राज़,
कुछ उनको जी लेने देते हैं, कुछ हम भी जी लेते आज,
बहुत हमसे रूठ जायेंगे, बहुत से घर यूँ ही टूट जायेंगे,
इसलिए रहते हैं, यूँ न होने देते हैं, पर्दा-ए-फास राज़,
कुछ उनको जी लेने देते हैं, कुछ हम भी जी लेते आज,
तुख्लिसें तेरी
तेरा हुश्न आज बाज़ार में बिकने आया,
कोई खरीददार न मिला, मैं ताकने आया,
किस की नज़र तुझपर पड़ेगी, देखने आया,
कौन तुझे ले जाएगा, जानने मैं आया,
अब तो मैं ही तुझे खरीद लेता हूँ,
बना गुलाम हरम में जगह देता हूँ,
कोई और कितनी ही बोली लगाए,
तुझे किसी के पास न जाने देता हूँ,
यह रवायियत, हुश्न की मैंने जो देखी,
उसपर फ़िदा हो, यूँ अपनाने की सूझी,
न यूँ अब शरमा, मेरी ख्वाबोगाह में,
रह अब बेपरदा, मेरी आरामगाह में,
तुख्लिसें तेरी आखें, कितनी गहरी हैं,
मुफ्लिसें तेरी निगाहें, क्या कहती हैं,
ओठों को अब कपकपाने दे, न रोक,
गालों में गुलाबियत आने दे, न रोक,
तुझे पाकर, जिन्दगी भूल गया मैं,
दोस्त-दुश्मन-दुनिया भूल गया मैं,
अब तो तेरे आगोश में, सोता हूँ मैं,
न रोता न जागता, सब खोता हूँ मैं,
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कोई खरीददार न मिला, मैं ताकने आया,
किस की नज़र तुझपर पड़ेगी, देखने आया,
कौन तुझे ले जाएगा, जानने मैं आया,
अब तो मैं ही तुझे खरीद लेता हूँ,
बना गुलाम हरम में जगह देता हूँ,
कोई और कितनी ही बोली लगाए,
तुझे किसी के पास न जाने देता हूँ,
यह रवायियत, हुश्न की मैंने जो देखी,
उसपर फ़िदा हो, यूँ अपनाने की सूझी,
न यूँ अब शरमा, मेरी ख्वाबोगाह में,
रह अब बेपरदा, मेरी आरामगाह में,
तुख्लिसें तेरी आखें, कितनी गहरी हैं,
मुफ्लिसें तेरी निगाहें, क्या कहती हैं,
ओठों को अब कपकपाने दे, न रोक,
गालों में गुलाबियत आने दे, न रोक,
तुझे पाकर, जिन्दगी भूल गया मैं,
दोस्त-दुश्मन-दुनिया भूल गया मैं,
अब तो तेरे आगोश में, सोता हूँ मैं,
न रोता न जागता, सब खोता हूँ मैं,
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दबे पाऊँ
दबे पाऊँ वो मेरी मजार पर आये,
सोचा की न पता चलेगा, यूँ आये,
पर मैं अभी सोई नहीं थी, की जाये,
इंतज़ार इनका था, अब तक न आये,
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सोचा की न पता चलेगा, यूँ आये,
पर मैं अभी सोई नहीं थी, की जाये,
इंतज़ार इनका था, अब तक न आये,
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इतनी उदास
इतनी उदास बैठी हो,
क्या कोई गम सता रहा है,
थोडा-तो मुस्करा दो,
क्या कोई साथ न दे रहा है,
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क्या कोई गम सता रहा है,
थोडा-तो मुस्करा दो,
क्या कोई साथ न दे रहा है,
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शनिवार, 27 अगस्त 2011
दिल बैठा
अब तो दिल बैठा जाता है,
तेरे बिना न रहा जाता है,
तू जल्दी से चली आ रे,
नहीं तो रुखसत हुआ रे,
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तेरे बिना न रहा जाता है,
तू जल्दी से चली आ रे,
नहीं तो रुखसत हुआ रे,
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अह्सासे-हुज़ुरियत
अह्सासे-हुज़ुरियत का इन्तखाब,
बज्में खायियत की जिन्दगी न थी,
उस रूह न निकली हर नज़्म,
तेरी नजरियत की जिन्दगी न थी,
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बज्में खायियत की जिन्दगी न थी,
उस रूह न निकली हर नज़्म,
तेरी नजरियत की जिन्दगी न थी,
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यूँ जिस्म
यूँ जिस्म को, छोड़ते हुए,
किसी की रूह को देखा है,
झटका-सा लगते हुए,
रोमा-रोमा कांपते देखा है,
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किसी की रूह को देखा है,
झटका-सा लगते हुए,
रोमा-रोमा कांपते देखा है,
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ये मोहब्बत
ये मोहब्बत है की फ़ना हो जाती है,
इज्जत की खातिर,
न सोचती न समझती है, मर जाती है,
लाज की खातिर,
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इज्जत की खातिर,
न सोचती न समझती है, मर जाती है,
लाज की खातिर,
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कशमकश की
कशमकश की जिन्दगी में,
इसकी सुनूँ की, उसकी सुनूँ,
दिल की दिल में रहने दूँ,
या सारे जहाँ से कह दूँ,
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इसकी सुनूँ की, उसकी सुनूँ,
दिल की दिल में रहने दूँ,
या सारे जहाँ से कह दूँ,
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मजबूर दिल
मजबूर दिल का क्या करें,
कदम अपने-आप उधर चलें,
रोकने से अब वो क्या रुकें,
सर-ए-कलम की परवाह न करें,
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कदम अपने-आप उधर चलें,
रोकने से अब वो क्या रुकें,
सर-ए-कलम की परवाह न करें,
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इख्तियाले हुश्न
इख्तियाले हुश्न,
न ये तेरा मतला,
तेरे पैमाने की,
पैमाईश से गुज़र सका,
मशहूर होते-होते,
दिन गुज़र गए,
तेरी नज़र से,
न गुज़र सका,
.
न ये तेरा मतला,
तेरे पैमाने की,
पैमाईश से गुज़र सका,
मशहूर होते-होते,
दिन गुज़र गए,
तेरी नज़र से,
न गुज़र सका,
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पलट गयी
पलट गयी यूँ अपनी जबान से,
देखा न किसी किसी मकान से,
देखते रहे यूँ किसी की दुकान से,
कोई खनक तो टकराए कान से,
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देखा न किसी किसी मकान से,
देखते रहे यूँ किसी की दुकान से,
कोई खनक तो टकराए कान से,
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फातिबा लगाकर
ये तू है या कोई और है,
तेरे चेहरे से टपकता नूर है,
किसी और का फातिबा लगाकर,
क्यों बहला रही है यूँ, फुसलाकर,
तेरे चेहरे से टपकता नूर है,
किसी और का फातिबा लगाकर,
क्यों बहला रही है यूँ, फुसलाकर,
मह्हबीबों से
मह्हबीबों से कह दो, न परेशान करें,
हम बैठे है, अपने यार के पहलू में,
खो गए सहलो-कदम, न इंतज़ार करें,
दिल एक हो गए, यार के प्यार में,
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हम बैठे है, अपने यार के पहलू में,
खो गए सहलो-कदम, न इंतज़ार करें,
दिल एक हो गए, यार के प्यार में,
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इस मेले
इस मेले में सब अपनी-अपनी चीजे बेचते हैं |
कोई हुनर बेचता है, कोई हुनरवाली बेचते हैं |
खरीददार बहुत घूम रहे, मज़े हैं सब ले रहे |
जिसके जेब में पैसे हैं, वो मेला अब देख रहे |
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कोई हुनर बेचता है, कोई हुनरवाली बेचते हैं |
खरीददार बहुत घूम रहे, मज़े हैं सब ले रहे |
जिसके जेब में पैसे हैं, वो मेला अब देख रहे |
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शुक्रवार, 26 अगस्त 2011
नजरिया इंसान
नजरिया इंसान का, नज़र से नज़र आ जाता है |
वो कहे भी न, उसकी नज़र में नज़र आ जाता है |
नज़रों की बोली सीखी नहीं जाती |
नज़रों से नज़रें बस ताड़ लीं जाती |
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वो कहे भी न, उसकी नज़र में नज़र आ जाता है |
नज़रों की बोली सीखी नहीं जाती |
नज़रों से नज़रें बस ताड़ लीं जाती |
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शर्मों हया
शर्मों हया के इस ज़माने में,
इश्क का इज़हार न कर सकते हैं,
नज़रें सबकी हम पर गाड़ी हैं,
चाहकर भी न तुझसे मिल सकते हैं,
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इश्क का इज़हार न कर सकते हैं,
नज़रें सबकी हम पर गाड़ी हैं,
चाहकर भी न तुझसे मिल सकते हैं,
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पैगाम भी
पैगाम भी चुपके से पड़ लेते हैं,
सबकी नज़रों से बचके रो लेते हैं,
हुकूक-सा दिल में उठता है,
उसको किसी तरह संभाल लेते हैं,
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सबकी नज़रों से बचके रो लेते हैं,
हुकूक-सा दिल में उठता है,
उसको किसी तरह संभाल लेते हैं,
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कुछ राज़
कुछ राज़ अपनों से भी छुपाने होते हैं,
कुछ काज अपनों से भी छुपाने होते हैं,
दिल की गहराईयों में अकेले होते हैं,
ग़मों की तन्हाईयों संग खेले होते हैं,
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कुछ काज अपनों से भी छुपाने होते हैं,
दिल की गहराईयों में अकेले होते हैं,
ग़मों की तन्हाईयों संग खेले होते हैं,
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हुश्न बेरुखी
हुश्न बेरुखी दिखाता है,
लाज से वो डरता है,
अब तो मिलने से भी कतराता है,
याद बहुत आता है,
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लाज से वो डरता है,
अब तो मिलने से भी कतराता है,
याद बहुत आता है,
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शहंशाहों को
शहंशाहों को भी गम होता था,
उनमें भी दिल होता था,
मसोसकर वो रखते थे,
किसी से न कहते थे,
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उनमें भी दिल होता था,
मसोसकर वो रखते थे,
किसी से न कहते थे,
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तिज़ारते हुकुम
तिज़ारते हुकुम उसका माना,
और रूह को फ़ना किया,
मज़े से अब मेरा गुज़र जाना,
किसी को पैगाम न दिया,
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और रूह को फ़ना किया,
मज़े से अब मेरा गुज़र जाना,
किसी को पैगाम न दिया,
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गम जदा
गम जदा होकर,
जिन्दगी भर,
खुशियाँ बटोरता रहा,
वक्त जब आया,
तकलीफों से निजात पाने का,
उनसे अपनी रूह को रोशन करता रहा,
.
जिन्दगी भर,
खुशियाँ बटोरता रहा,
वक्त जब आया,
तकलीफों से निजात पाने का,
उनसे अपनी रूह को रोशन करता रहा,
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तन्हाईओं की
तन्हाईओं की अपनी महफ़िल में,
खूब मस्त हैं हम,
कोई कब यहाँ, आने न पाए,
जाम हमारे पीने न पाए,
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खूब मस्त हैं हम,
कोई कब यहाँ, आने न पाए,
जाम हमारे पीने न पाए,
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मेरे महबूब
मेरे महबूब, इस तन्हाई में,
तेरा साथ भी, गवांरा न था,
तू कहीं थीं, मैं और कहीं था,
एक-दुसरे का तस्सवुर भी गंवारा न था,
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तेरा साथ भी, गवांरा न था,
तू कहीं थीं, मैं और कहीं था,
एक-दुसरे का तस्सवुर भी गंवारा न था,
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तुम्हारा हुश्न
तुम्हारा हुश्न भी कम नहीं है,
तुम्हें किसी बात का गम नहीं है,
हर फरमाईश होती तुम्हारी पूरी,
तुम हो खुले ख्यालों से भरी पूरी,
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तुम्हें किसी बात का गम नहीं है,
हर फरमाईश होती तुम्हारी पूरी,
तुम हो खुले ख्यालों से भरी पूरी,
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वक्त को
वक्त को बस कुछ अन्दाज़ था,
सफ़र का कुछ यूँ आगाज़ था,
न रुके पड़ाव पर कहीं,
जहां रुके मंजिल वहीं,
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सफ़र का कुछ यूँ आगाज़ था,
न रुके पड़ाव पर कहीं,
जहां रुके मंजिल वहीं,
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गुरुवार, 25 अगस्त 2011
तेरी तस्वीर
तू है ये, तेरा हुश्न है ये,
नज़र न इससे हटती है,
एक बार जहन में आ सकती है,
तेरी तस्वीर आखों में बस्ती है,
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नज़र न इससे हटती है,
एक बार जहन में आ सकती है,
तेरी तस्वीर आखों में बस्ती है,
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तमन्नाओं का
तमन्नाओं का सागर, बहुत बड़ा है |
यूँ दिल मेरा उससे भी बहुत बड़ा है |
पर मजबूरी भी एक चीज़ होती है |
वो किसी को न कुछ करने देती है |
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यूँ दिल मेरा उससे भी बहुत बड़ा है |
पर मजबूरी भी एक चीज़ होती है |
वो किसी को न कुछ करने देती है |
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तुमसे बिछड़कर
तुमसे बिछड़कर, जिन्दगी को जीना, अजीब-सा लगता है |
जिन्दगी का हर कोना, खाली-खाली सुनसान-सा लगता है |
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क्या हुश्न
क्या हुश्न है, हसीना का,
देखते बनता है,
नज़रें न हटती हैं,
नज़रों से मिलती हैं,
इन उडती जुल्फों में,
कुछ कहते ओंठों में,
नाज़ुक से हाथों में,शोखी ये गालों में,
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तेरे दिल
तेरे दिल में ही तो आराम लेता है |
तेरे प्यार में ही तो पयाम लेता है |
तेरे जुल्फों में ही तो छाव लेता है |
तेरे इश्क में ही तो थोडा सो लेता है |
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तेरे प्यार में ही तो पयाम लेता है |
तेरे जुल्फों में ही तो छाव लेता है |
तेरे इश्क में ही तो थोडा सो लेता है |
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दर्द एक
दर्द एक दीवाने का,
दिल को चीर जाता है,
जब कोई दीवाना,
यूँ पास से गुज़र जाता है,
रूह उसकी बता जाती है,
कोई बात कह जाती है,
किसी से पूछते भी नहीं है,
रूह की रूह जान जाती है,
पता नहीं उसकी, उसे मिलेगी की नहीं,
पता नहीं उसकी, रूह खिलेगी की नहीं,
बात पलट जाता है वह,
जब कोई टटोलता है उसे,
दिल उलट जाता है वह,
जब कोई मटोलता है उसे,
इस तरह वक्त बीत रहा है,
उसका दिल जीत रहा है,
चेहरे से नूर टपक रहा है,
मोहरा उसका खिल रहा है,
लगता है बात अब बन रही है,
आखें कुछ इशारा कर रही है,
दीवानगी को पार कर उसने,
इख्लायियत को पाया उसने,
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दिल को चीर जाता है,
जब कोई दीवाना,
यूँ पास से गुज़र जाता है,
रूह उसकी बता जाती है,
कोई बात कह जाती है,
किसी से पूछते भी नहीं है,
रूह की रूह जान जाती है,
पता नहीं उसकी, उसे मिलेगी की नहीं,
पता नहीं उसकी, रूह खिलेगी की नहीं,
बात पलट जाता है वह,
जब कोई टटोलता है उसे,
दिल उलट जाता है वह,
जब कोई मटोलता है उसे,
इस तरह वक्त बीत रहा है,
उसका दिल जीत रहा है,
चेहरे से नूर टपक रहा है,
मोहरा उसका खिल रहा है,
लगता है बात अब बन रही है,
आखें कुछ इशारा कर रही है,
दीवानगी को पार कर उसने,
इख्लायियत को पाया उसने,
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बुधवार, 24 अगस्त 2011
उस रोज़
उस रोज़
वो यूँ खफा हो गयी,
न जाने फिर,
कहाँ दफा हो गयी,
बहुत ढूँढा,
खूब तलाश किया,
बैठे बिठाये,
क्यों मज़ाक किया,
एक रोज़,
न जाने ऐसा लगा,
वही है,
पास मैं जाने लगा,
हवा चली,
पलके बंद हुई,
सामने से,
वह गायब हुई,
इतनी बेरुखी,
इतना गुस्सा हमपर,
कोई नहीं,
हमें ऐतबार खुदपर,
एक रोज़,
अचानक उसका आना,
यूँ रोना,
लिपटकर चले जाना,
इशारा हुआ,
गए पैगाम लेकर,
निकाह हुआ,
आये उसको लेकर,
.
वो यूँ खफा हो गयी,
न जाने फिर,
कहाँ दफा हो गयी,
बहुत ढूँढा,
खूब तलाश किया,
बैठे बिठाये,
क्यों मज़ाक किया,
एक रोज़,
न जाने ऐसा लगा,
वही है,
पास मैं जाने लगा,
हवा चली,
पलके बंद हुई,
सामने से,
वह गायब हुई,
इतनी बेरुखी,
इतना गुस्सा हमपर,
कोई नहीं,
हमें ऐतबार खुदपर,
एक रोज़,
अचानक उसका आना,
यूँ रोना,
लिपटकर चले जाना,
इशारा हुआ,
गए पैगाम लेकर,
निकाह हुआ,
आये उसको लेकर,
.
बैठे-बैठे
बैठे-बैठे एक दिन,
एक बात याद आ गयी,
कहने ही वाले थे,
सामने से वो निकल गयी,
निगाह उसकी तरफ बढ गयी,
दूर तक वो निकल गयी,
बात फिर रह गयी,
अन्दर-अन्दर ही कुछ कह गयी,
.
एक बात याद आ गयी,
कहने ही वाले थे,
सामने से वो निकल गयी,
निगाह उसकी तरफ बढ गयी,
दूर तक वो निकल गयी,
बात फिर रह गयी,
अन्दर-अन्दर ही कुछ कह गयी,
.
मकसदों का
मकसदों का आलम, रास्तों की थकान मिटा देता है,
पहुँच जाता है, मंजिल पर सब कुछ यूँ भुला देता है,
.
पहुँच जाता है, मंजिल पर सब कुछ यूँ भुला देता है,
.
किस से
किस से कहें
कैसे कहें,
शुक्रिया अदा करते हैं,
ब्लॉग का,
दिया उसने,
मौका हमें,
अपने दिल के,
गुबार को निकालने का,
न जाने कहाँ-कहाँ भटकते,
किसे-किसे अपना राज़ बताते,
कई तो राज़ का फायदा उठाते,
कई तो हमारा मजाक उड़ाते,
पर अब कोई फ़िक्र नहीं,
यहाँ कोई हमें जानता नहीं,
खुलकर दिल को खोल सकते हैं,
अपना सारा दुःख उड़ेल सकते हैं,
शायद उनकी भी नज़र पड़ जाए,
उनको भी हमारी याद आ जाए,
कुछ अनकहे लफ्ज़ निकल आए,
वो भी हमारी याद में खो जाए,
.
कैसे कहें,
शुक्रिया अदा करते हैं,
ब्लॉग का,
दिया उसने,
मौका हमें,
अपने दिल के,
गुबार को निकालने का,
न जाने कहाँ-कहाँ भटकते,
किसे-किसे अपना राज़ बताते,
कई तो राज़ का फायदा उठाते,
कई तो हमारा मजाक उड़ाते,
पर अब कोई फ़िक्र नहीं,
यहाँ कोई हमें जानता नहीं,
खुलकर दिल को खोल सकते हैं,
अपना सारा दुःख उड़ेल सकते हैं,
शायद उनकी भी नज़र पड़ जाए,
उनको भी हमारी याद आ जाए,
कुछ अनकहे लफ्ज़ निकल आए,
वो भी हमारी याद में खो जाए,
.
मंगलवार, 23 अगस्त 2011
तनहा-सा
तनहा-सा खड़ा है,
कोई न उसका सगा है,
टकटकी है आसमानों में,
ढूंढती है ख्वाबों में,
पसीनें कि बूंदे,
आँखों में,
जर्जर है पिंजर,
बड़ा ग़मज़दा है मंज़र,
ढूंढता है कोई मन्तर,
कर दे सब छू-मन्तर,
आस अभी-भी है बाकी,
टिका ली उसने लाठी,
गहरी है आखों कि गहराई,
डूबने से डरता है, हर कोई,
न पास जाता है कोई,
दूर ही रहना चाहता है हर कोई,
.
कोई न उसका सगा है,
टकटकी है आसमानों में,
ढूंढती है ख्वाबों में,
पसीनें कि बूंदे,
आँखों में,
जर्जर है पिंजर,
बड़ा ग़मज़दा है मंज़र,
ढूंढता है कोई मन्तर,
कर दे सब छू-मन्तर,
आस अभी-भी है बाकी,
टिका ली उसने लाठी,
गहरी है आखों कि गहराई,
डूबने से डरता है, हर कोई,
न पास जाता है कोई,
दूर ही रहना चाहता है हर कोई,
.
उनसे मिलने
उनसे मिलने पर क्या कहेंगे,
लफ्ज़ निकलेंगे, ओंठ कपेंगे,
रात है भीगी-भीगी-सी,
सुबह को तो होने दो,
अब बहुत जाग लिए हैं हम,
थोडा तो अब सोने दो,
तन्हाई में इस तरह से,
कुछ पल तो गुज़र जाने दो,
पलकों में गुज़रती हैं रातें,
अफसानों में दिन हैं गुज़रते,
ऐसे तो बहुत हैं जहाँ में,
रातों को करवटें बदलते,
.
लफ्ज़ निकलेंगे, ओंठ कपेंगे,
रात है भीगी-भीगी-सी,
सुबह को तो होने दो,
अब बहुत जाग लिए हैं हम,
थोडा तो अब सोने दो,
तन्हाई में इस तरह से,
कुछ पल तो गुज़र जाने दो,
पलकों में गुज़रती हैं रातें,
अफसानों में दिन हैं गुज़रते,
ऐसे तो बहुत हैं जहाँ में,
रातों को करवटें बदलते,
.
कल उसका
कल उसका फोन आया,
बड़े दिनों के बाद आया,
बड़ी दूर रहती है वो,
बड़ी मसरूफ रहती है वो,
मैं करता हूँ तो बहाना बनाती है,
बहुत मसरूफ हूँ ऐसा जताती है,
खुद की बात कहती है,
मेरी बात अनसुनी करती है,
बार-बार हेलो कहती है,
फोन पर फिर बात न करती है,
पर उसके उतने बोल,
कर जाते मीठा घोल,
यादें पुरानी ताज़ा हो जाती,
ऐसा लगता की वो रूबरू है बतियाती,
उसका हुश्न आज भी याद है,
फोटो न कोई मेरे पास है,
कितनी बदल गयी होगी,
पर रूह तो वही होगी,
उसकी बहुत-सी खूबियाँ हैं,
उसके बहुत-से सपने है,
हो जाएँ पूरी उसकी ख्वाईशें,
खुदा-से दुआ की हमने है,
.
बड़े दिनों के बाद आया,
बड़ी दूर रहती है वो,
बड़ी मसरूफ रहती है वो,
मैं करता हूँ तो बहाना बनाती है,
बहुत मसरूफ हूँ ऐसा जताती है,
खुद की बात कहती है,
मेरी बात अनसुनी करती है,
बार-बार हेलो कहती है,
फोन पर फिर बात न करती है,
पर उसके उतने बोल,
कर जाते मीठा घोल,
यादें पुरानी ताज़ा हो जाती,
ऐसा लगता की वो रूबरू है बतियाती,
उसका हुश्न आज भी याद है,
फोटो न कोई मेरे पास है,
कितनी बदल गयी होगी,
पर रूह तो वही होगी,
उसकी बहुत-सी खूबियाँ हैं,
उसके बहुत-से सपने है,
हो जाएँ पूरी उसकी ख्वाईशें,
खुदा-से दुआ की हमने है,
.
इस तरह
इस तरह तन्हाईओं में, सनम को याद किया जाता है,
कुछ तो अपना है, जिसको किसी के साथ न शेयर किया जाता है,
.
कुछ तो अपना है, जिसको किसी के साथ न शेयर किया जाता है,
.
बस यूँ
बस यूँ ही कुछ न कुछ चलता रहता,
जिन्दगी का हर पल गुज़रता रहता,
कुछ खास-सा न हम कर पाते,
गर वो हमारा साथ न निभाते,
.
जिन्दगी का हर पल गुज़रता रहता,
कुछ खास-सा न हम कर पाते,
गर वो हमारा साथ न निभाते,
.
इन चन्द
इन चन्द लम्हों को, तो जी लेने दो,
डूब जाने दो, इनमें समां जाने दो,
न बाहर निकालो, अब तो बहने दो,
यूँ जिन्दगी को अब, बीत जाने दो,
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डूब जाने दो, इनमें समां जाने दो,
न बाहर निकालो, अब तो बहने दो,
यूँ जिन्दगी को अब, बीत जाने दो,
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इन ख्यालों
इन ख्यालों को अब मरने न देना,
जिन्दा रखना आंसू पिलाकर,
एक दिन इन्हें भी जिन्दगी दे देना,
यूँ न जाना किसी को भुलाकर,
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जिन्दा रखना आंसू पिलाकर,
एक दिन इन्हें भी जिन्दगी दे देना,
यूँ न जाना किसी को भुलाकर,
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सोमवार, 22 अगस्त 2011
इश्क में
इश्क में हारे हुए के, चन्द जख्म,
कुरेदते रहते हैं, न लगाते मरहम,
इश्क में जो हार जाता है,
वही इश्हार लिखता है,
टूटे हुए दिल टुकड़ों को,
आशुओं में डुबोकर लिखता है,
आशिक जब इश्क में हार जाते है,
तब अश्हार लिखते है,
चन्द लफ़्ज़ों को,
अपनी आसुओं की धार में पिरोकर रखते हैं,
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कुरेदते रहते हैं, न लगाते मरहम,
इश्क में जो हार जाता है,
वही इश्हार लिखता है,
टूटे हुए दिल टुकड़ों को,
आशुओं में डुबोकर लिखता है,
आशिक जब इश्क में हार जाते है,
तब अश्हार लिखते है,
चन्द लफ़्ज़ों को,
अपनी आसुओं की धार में पिरोकर रखते हैं,
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वाजिब वजह
वाजिब वजह न मिल रही थी, कोई बहाना कर लूं,
तेरे दीदार के लिए, रोज़ तेरे घर आना-जाना कर लूं,
तेरे दीदार के लिए, रोज़ तेरे घर आना-जाना कर लूं,
एक तोहफा - 8
सुगंधा मिश्रा को एक तोहफा
Sugandha Mishra
कण्ठ इनका सुरीला है,
मिसरी की डली से गीला है,
माता सरस्वती का आशीर्वाद है इनको,
बड़े बुजुर्गों का साथ है इनको,
तालीम इनकी हुई है अच्छी,
मेहनत भी इन्होने की है सच्ची,
किसी रूह की खास पहचान होती है,
दिल साफ़, मीठी जुबान होती है,
इनको तो नाद की सिद्धि हुई है,
नाभि से उठकर, कण्ठ तक वृद्धि हुई है,
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बड़ी बेसब्री
बड़ी बेसब्री से उसका इंतज़ार कर रहा हूँ,
मन ही मन उसका चेहरा बुन रहा हूँ,
कैसे वो लगती होगी,
जो आज सफ़र मैं मेरे साथ होगी,
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मन ही मन उसका चेहरा बुन रहा हूँ,
कैसे वो लगती होगी,
जो आज सफ़र मैं मेरे साथ होगी,
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अब इंतज़ार
अब इंतज़ार हुश्न का नहीं करते,
जबसे एक बार दिल टूट गया,
यूँ बस बैठे रहते है,
कोई जबसे से छोड़कर गया,
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जबसे एक बार दिल टूट गया,
यूँ बस बैठे रहते है,
कोई जबसे से छोड़कर गया,
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बा मुश्किल
बा मुश्किल टूटे दिल को पिघला कर फिर से जमाया था,
अभी ठण्डा भी न हो पाया था, किसी ने फिर से नज़र का तीर चलाया था,
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अभी ठण्डा भी न हो पाया था, किसी ने फिर से नज़र का तीर चलाया था,
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सितारों की
सितारों की आज़माइश, उजाले में क्यूँ करते हो,
रौशनी चली जाने दो,
अँधेरा हो जाने दो,
बदल छंट जाने दो,
आमवश को आने दो,
तब सितारों को चमकते देखकर, नज़रें क्यूँ फेरते हो,
.
रौशनी चली जाने दो,
अँधेरा हो जाने दो,
बदल छंट जाने दो,
आमवश को आने दो,
तब सितारों को चमकते देखकर, नज़रें क्यूँ फेरते हो,
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ग़मों से
ग़मों से दूर,
खुशियों से भरपूर,
मिला एक महबूब,
खुला यूँ नसीब,
देखते-देखते,
नज़र मिलते-मिलते,
शरमाते-शरमाते,
नज़रें चुराते,
ओठों को दबाते,
सहमते-सहमते,
कुछ न कहते,
नज़रें जब हुई चार,
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खुशियों से भरपूर,
मिला एक महबूब,
खुला यूँ नसीब,
देखते-देखते,
नज़र मिलते-मिलते,
शरमाते-शरमाते,
नज़रें चुराते,
ओठों को दबाते,
सहमते-सहमते,
कुछ न कहते,
नज़रें जब हुई चार,
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कोफ़्त न
कोफ़्त न निकाल किसी पर, आज कोफ्ता खिलाया है |
कोफ़्त गर मिटानी है, कोफ्ता उसे जरूर खिलाना है |
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कोफ़्त गर मिटानी है, कोफ्ता उसे जरूर खिलाना है |
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तखल्लुस और
तखल्लुस और रख लिया है,
इस टूटे हुए दिल का,
रहना है इस महफ़िल में,
क्यूँ जाहिर करें जख्म दिल का,
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इस टूटे हुए दिल का,
रहना है इस महफ़िल में,
क्यूँ जाहिर करें जख्म दिल का,
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अब समझदारों
अब समझदारों की दुनिया है,
न अब दिलदारों की दुनिया है,
हर काम अब हिसाब से होता है,
दिल की जगह अक्ल से काम होता है,
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न अब दिलदारों की दुनिया है,
हर काम अब हिसाब से होता है,
दिल की जगह अक्ल से काम होता है,
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रुमन्दर परवीनों
रुमन्दर परवीनों से यह मत पूछो,
कहाँ-कहाँ जख्म खाए हैं,
अभी तो मलहम भी नहीं लगाया,
वो फिर जख्म देने आये हैं,
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कहाँ-कहाँ जख्म खाए हैं,
अभी तो मलहम भी नहीं लगाया,
वो फिर जख्म देने आये हैं,
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राहें छूट
राहें छूट गयी बहुत दूर,
अब तो बे राहों पर चलना है,
हमसफ़र अब कोई नहीं,
अब तो कदम-कदम पर संभालना है,
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अब तो बे राहों पर चलना है,
हमसफ़र अब कोई नहीं,
अब तो कदम-कदम पर संभालना है,
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शनिवार, 20 अगस्त 2011
तुमसे बिछड़कर
तुमसे बिछड़कर, जिन्दगी को जीना, अजीब-सा लगता है |
जिन्दगी का हर कोना, खाली-खाली सुनसान-सा लगता है |
पता नहीं, क्यूँ दिन में भी वीरानगी-सी लगती है |
पता नहीं, क्यूँ रात में भी महफ़िल-सी सजती है |
चन्द शेर निकल आते हैं, गम से डुबे हुए |
अपने को ही सुना लेते हैं, तुम में डुबे हुए |
यूँ ही गलियाँ नापते हैं, यूँ ही सड़कें नापते हैं |
कहीं किसी पुलिया पर, अपने में ही झांकते हैं |
चेहरा सामने होता है, दिमाग ठण्डा होता है |
आखें तुम्हें देखती हैं, पलकें न अब झेप्ति हैं |
रोज़ का किस्सा यही होता है |
जमाना मुझ पर हँसता है |
मेरा अपना मुझपर रोता है |
क्यूँ जिन्दगी यूँ खोता है |
क्या करें, अब तुझे, यूँ भुलाया नहीं जाता |
किसी और को तेरी जगह लाया नहीं जाता |
अब तो गम छिपा लेते हैं, ज़माने के काम हम भी आ लेते हैं |
चेहरे से सारे दिन हँसते रहें, रात को दिल खोलकर रो लेते हैं |
क्यूँ जाहिर करें, अपने गम जिन्दगी के |
बहाने ढूढते हैं, ज़माने को खुश करने के |
तुमसे बिछड़कर, जिन्दगी को जीना, अजीब-सा लगता है |
जिन्दगी का हर कोना, खाली-खाली सुनसान-सा लगता है |
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जिन्दगी का हर कोना, खाली-खाली सुनसान-सा लगता है |
पता नहीं, क्यूँ दिन में भी वीरानगी-सी लगती है |
पता नहीं, क्यूँ रात में भी महफ़िल-सी सजती है |
चन्द शेर निकल आते हैं, गम से डुबे हुए |
अपने को ही सुना लेते हैं, तुम में डुबे हुए |
यूँ ही गलियाँ नापते हैं, यूँ ही सड़कें नापते हैं |
कहीं किसी पुलिया पर, अपने में ही झांकते हैं |
चेहरा सामने होता है, दिमाग ठण्डा होता है |
आखें तुम्हें देखती हैं, पलकें न अब झेप्ति हैं |
रोज़ का किस्सा यही होता है |
जमाना मुझ पर हँसता है |
मेरा अपना मुझपर रोता है |
क्यूँ जिन्दगी यूँ खोता है |
क्या करें, अब तुझे, यूँ भुलाया नहीं जाता |
किसी और को तेरी जगह लाया नहीं जाता |
अब तो गम छिपा लेते हैं, ज़माने के काम हम भी आ लेते हैं |
चेहरे से सारे दिन हँसते रहें, रात को दिल खोलकर रो लेते हैं |
क्यूँ जाहिर करें, अपने गम जिन्दगी के |
बहाने ढूढते हैं, ज़माने को खुश करने के |
तुमसे बिछड़कर, जिन्दगी को जीना, अजीब-सा लगता है |
जिन्दगी का हर कोना, खाली-खाली सुनसान-सा लगता है |
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एक नज़र
एक नज़र, किसी का भी, यूँ काम तमाम, कर देती है |
तीर क्या, तलवार क्या, बन्दूक को भी आराम देती है |
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तीर क्या, तलवार क्या, बन्दूक को भी आराम देती है |
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सगुफ्ता हुश्न
सगुफ्ता हुश्न को,
मानने वालों ने,
जिस्म को इतनी,
तवज्जो क्यूँ दी है,
गर रूह न होती,
जिस्म में,
यूँ रौशनी न होती,
किसी हुश्न में,
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मानने वालों ने,
जिस्म को इतनी,
तवज्जो क्यूँ दी है,
गर रूह न होती,
जिस्म में,
यूँ रौशनी न होती,
किसी हुश्न में,
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महकती फिजाओं
महकती फिजाओं का आलम, बसाया है यूँ तुमने |
थोड़ी खुशबू मुझे लेने दो, मदहोश किया यूँ तुमने |
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थोड़ी खुशबू मुझे लेने दो, मदहोश किया यूँ तुमने |
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फलसफा-हुश्न
फलसफा-ए-हुश्न का, तेरे अफसाने से शुरू होगा |
तू ख़ूबसूरत इतनी है, कि जमाना तेरे हुश्न का कायल होगा |
उस पर तेरी सोखी का आलम, इस कदर समां गया है |
तू महफूज़ रहे, तेरे भीतर खुदा का नूर आ गया है || १ ||
मुर्बते हुश्न, कि तेरे दायरे से, न निकल पायेंगे |
मर जायेंगे, मिट जायेंगे, तुझे खुश कर जायेंगे || २ ||
खुश है जमाना तेरे दीदार से, क्यूँ तू छिपा रही है अपने हुश्न को |
दुआयें देंगे तुझको, ज़माने कि नज़रों से गुजरने दे, अपने हुश्न को || ३ ||
छुरियां चल जाती हैं, सरे बाज़ार तेरे हुश्न कि खातिर |
दोस्तों मैं भी जंग, छिड जाती है तेरे हुश्न कि खातिर |
तेरे हुश्न पर जवानी इस कदर छाई है |
तू बस मेरे लिए ही, इस दुनिया में आयी है || ४ ||
बदस्तूर तेरा यह जुल्म, हम सह न सके |
अब तो दीदार करा दे, तेरे बिना हम रह न सके || ५ ||
तुझे देखे जमाना हो गया |
मस्ताने से तेरा दीवाना हो गया |
पल-पल तेरी याद में |
दर-दर भटकने वाला बेगाना हो गया || ६ ||
तू ख़ूबसूरत इतनी है, कि जमाना तेरे हुश्न का कायल होगा |
उस पर तेरी सोखी का आलम, इस कदर समां गया है |
तू महफूज़ रहे, तेरे भीतर खुदा का नूर आ गया है || १ ||
मुर्बते हुश्न, कि तेरे दायरे से, न निकल पायेंगे |
मर जायेंगे, मिट जायेंगे, तुझे खुश कर जायेंगे || २ ||
खुश है जमाना तेरे दीदार से, क्यूँ तू छिपा रही है अपने हुश्न को |
दुआयें देंगे तुझको, ज़माने कि नज़रों से गुजरने दे, अपने हुश्न को || ३ ||
छुरियां चल जाती हैं, सरे बाज़ार तेरे हुश्न कि खातिर |
दोस्तों मैं भी जंग, छिड जाती है तेरे हुश्न कि खातिर |
तेरे हुश्न पर जवानी इस कदर छाई है |
तू बस मेरे लिए ही, इस दुनिया में आयी है || ४ ||
बदस्तूर तेरा यह जुल्म, हम सह न सके |
अब तो दीदार करा दे, तेरे बिना हम रह न सके || ५ ||
तुझे देखे जमाना हो गया |
मस्ताने से तेरा दीवाना हो गया |
पल-पल तेरी याद में |
दर-दर भटकने वाला बेगाना हो गया || ६ ||
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शुक्रवार, 5 अगस्त 2011
वो अकेली
वो अकेली चल रही थी,
कदम जल्दी-जल्दी धर रही थी,
पता नहीं कहाँ जा रही थी,
मुँह और सिर ढक रही थी,
गाडी जो हमारी,
उसके पास से निकली,
थोडा-सा सा वो सकपकाई,
नज़रों में सवाल लेकर,
सर जो यूँ घुमाई,
गाडी हमारी आगे बढ गयी,
वो पीछे रह गयी,
एक अबूझ पहेली कह गयी,
पर उसकी वो अदा,
नज़रों में रह गयी,
निगाहों से बहुत कुछ कह गयी,
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कदम जल्दी-जल्दी धर रही थी,
पता नहीं कहाँ जा रही थी,
मुँह और सिर ढक रही थी,
गाडी जो हमारी,
उसके पास से निकली,
थोडा-सा सा वो सकपकाई,
नज़रों में सवाल लेकर,
सर जो यूँ घुमाई,
गाडी हमारी आगे बढ गयी,
वो पीछे रह गयी,
एक अबूझ पहेली कह गयी,
पर उसकी वो अदा,
नज़रों में रह गयी,
निगाहों से बहुत कुछ कह गयी,
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पीकर आशुओं
पीकर आशुओं को
स्वाद पता चला
जिन्दगी का
नमकीन सी है
अपने ही ग़मों
के आशुओं से
भरी सी है
गर गौर फ़रमाया
किसी को क्या भरमाया
अपना ही जख्म पाया
जो रिस-रिस के आया
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स्वाद पता चला
जिन्दगी का
नमकीन सी है
अपने ही ग़मों
के आशुओं से
भरी सी है
गर गौर फ़रमाया
किसी को क्या भरमाया
अपना ही जख्म पाया
जो रिस-रिस के आया
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चन्द इशारों
चन्द इशारों से चन्द घड़ियाँ यूँ गुज़र जाती हैं,
चन्द फूलों से चन्द कलियाँ यूँ खिल जाती हैं,
चन्द गालों से चन्द लडियां यूँ लटक जाती हैं,
चन्द हुश्नों से चन्द हसीनाएं यूँ निखर जाती हैं,
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चन्द फूलों से चन्द कलियाँ यूँ खिल जाती हैं,
चन्द गालों से चन्द लडियां यूँ लटक जाती हैं,
चन्द हुश्नों से चन्द हसीनाएं यूँ निखर जाती हैं,
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आखों से
आखों से आखों में उतरना जो चाहा,
सांसों से सांसों में, सामना जो चाहा,
आहों से आहों में, बदलना जो चाहा,
बाँहों से बाँहों में, भरना जो चाहा,
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सांसों से सांसों में, सामना जो चाहा,
आहों से आहों में, बदलना जो चाहा,
बाँहों से बाँहों में, भरना जो चाहा,
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मयखाने में
ये तो मयखाने में भी न मिलती थी,
जो तेरी आखों ने पिला दी,
अब क्यूँ भटकें मयखानों में,
जब मिल जाती है,
तेरी निगाहों में,
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जो तेरी आखों ने पिला दी,
अब क्यूँ भटकें मयखानों में,
जब मिल जाती है,
तेरी निगाहों में,
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आखें मिली
आखें मिली वक्त रुक सा गया |
सांसें मिली वक्त रुक सा गया |
आहें मिली वक्त रुक सा गया |
बाहें मिली वक्त रुक सा गया |
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सांसें मिली वक्त रुक सा गया |
आहें मिली वक्त रुक सा गया |
बाहें मिली वक्त रुक सा गया |
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हसरत जहाँ
हसरत जहाँ में आखों को हुश्न देखने की होती है |
जिधर भी हुश्न दिखता है, ये नज़र उधर होती है |
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जिधर भी हुश्न दिखता है, ये नज़र उधर होती है |
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अँधेरा था
अँधेरा था,
घुप्प अँधेरा था,
कुछ सूझ नहीं रहा था,
कोई पुकार नहीं रहा था,
कदम कैसे उठाऊँ,
क्या पता,
आगे क्या हो,
कदम रखते ही,
कुछ बाला हो,
वहीँ धीरे से बैठ गया,
अँधेरा छटने का इंतज़ार करने लगा,
अँधेरा छटा,
सब कुछ दिखा,
जहाँ में बैठा था,
वही मकाँ सबसे अच्छा दिखा,
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घुप्प अँधेरा था,
कुछ सूझ नहीं रहा था,
कोई पुकार नहीं रहा था,
कदम कैसे उठाऊँ,
क्या पता,
आगे क्या हो,
कदम रखते ही,
कुछ बाला हो,
वहीँ धीरे से बैठ गया,
अँधेरा छटने का इंतज़ार करने लगा,
अँधेरा छटा,
सब कुछ दिखा,
जहाँ में बैठा था,
वही मकाँ सबसे अच्छा दिखा,
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न आयेगी
अब वो यहाँ न आयेगी,.
अब वो तेरे से दूरी बनायेगी,
बातें तेरी उसको न लगती हैं अच्छी,
उसे तारीफ़ लगती है, अपनी अच्छी,
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अब वो तेरे से दूरी बनायेगी,
बातें तेरी उसको न लगती हैं अच्छी,
उसे तारीफ़ लगती है, अपनी अच्छी,
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आईना है
अब तो यादों का आईना है,
दिखती है शक्ल तेरी उसमें,
मुझे मेरी याद भी न आती है,
बस तू नज़र आती है तेरी उसमें,
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दिखती है शक्ल तेरी उसमें,
मुझे मेरी याद भी न आती है,
बस तू नज़र आती है तेरी उसमें,
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मुसीबत जदा
मुसीबत जदा जिन्दगी में,
पल एक सुकून का मिल जाए,
मेरे निकलने से पहले,
तेरी एक झलक मिल जाए,
पलके भी न गिरें,
उस पल को रोक लूं,
तू जा भी न सके,
तुझे जी भर कर देख लूं,
.
पल एक सुकून का मिल जाए,
मेरे निकलने से पहले,
तेरी एक झलक मिल जाए,
पलके भी न गिरें,
उस पल को रोक लूं,
तू जा भी न सके,
तुझे जी भर कर देख लूं,
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धीरे-धीरे
धीरे-धीरे,
वो चली आ रही थी,
सड़क पर,
नंगे पाँव,
सलवार हांथों में पकडे थी,
सर पर न छाता था,
न रेन कोट पहने थी,
सफ़ेद लिबास में,
मासूम सी लग रही थी,
हलकी सी बारिश हो रही थी,
पता नहीं कहाँ जा रही थी,
ईधर-उधर उसकी नज़र थी,
शायद ज़माने की आखें पड़ रही थी,
बस ये नजारा देखा,
उसको यूँ गुज़रते देखा,
नंगे पाँव सड़क पर,
एक ख़ूबसूरत हसीना को,
चलते हुए देखा,
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वो चली आ रही थी,
सड़क पर,
नंगे पाँव,
सलवार हांथों में पकडे थी,
सर पर न छाता था,
न रेन कोट पहने थी,
सफ़ेद लिबास में,
मासूम सी लग रही थी,
हलकी सी बारिश हो रही थी,
पता नहीं कहाँ जा रही थी,
ईधर-उधर उसकी नज़र थी,
शायद ज़माने की आखें पड़ रही थी,
बस ये नजारा देखा,
उसको यूँ गुज़रते देखा,
नंगे पाँव सड़क पर,
एक ख़ूबसूरत हसीना को,
चलते हुए देखा,
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बुधवार, 3 अगस्त 2011
उस दिन
बात उस दिन की है,
जब आँख पहली बार मिली थी,
हाँ वो अपनी सहेली के संग थी,
कनखियों से देख रही थी,
आगे को चल रही थी,
फिर उसके बाद सिलसिला सा शुरू हो गया,
मैं उसके पीछे दीवाना सा हो गया,
रोज़ उसी सड़क पर आना-जाना हो गया,
अब तो नैनो से नैन बतियाना हो गया,
आखों ने जब पड़ ली आखों की बोली,
फिर एक दिन वो बोली,
जरा इधर तो आओ,
कोन हो बताओ,
आज में तुम्हारी शिकायत भाई से करती हूँ,
घूरते हो तुम मुझे, तुम पर न मरती हूँ,
मेरा तो कोई और है,
तुम से पुरजोर है,
जला रही है, समझ गया,
इम्तिहान का वक्त है, समझ गया,
उससे कुछ न बोला,
अपना मुंह न खोला,
हंल्का सा मुस्कुरा दिया,
एक तरफ चल दिया,
उसे कुछ वक्त दिया,
आज न कुछ किया,
बस हम निकल लिए,
अपने दिल को थाम लिए,
अब उसकी बैचैनी थी,
रोज़ राह पर नैनी थी,
कुछ दिन निकल गए,
उसके अरमाँ मचल गए,
सही ये वक्त था,
मैं कुछ सख्त था,
उससे अनजान अपनी राह चला,
उसे देखे बिना अनमना चला,
वो अब भी चल रही थी,
अपनी राह छोड़, मेरी राह पर चल रही थी,
पीछे से उसने, हाथ पकड़ा,
दिया मुझे एक, लफड़ा,
यूँ वो लिपट गयी,
सरे बाज़ार यूँ पट गयी,
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बहुत दिनों
बहुत दिनों से तलाश है उसकी |
कैसे मैं पूंछू पतिया यूँ उसकी |
क्या सोचेंगी सह्कर्मियाँ ये उसकी |
कौन है क्यों पूछता है बात ये उसकी |
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कैसे मैं पूंछू पतिया यूँ उसकी |
क्या सोचेंगी सह्कर्मियाँ ये उसकी |
कौन है क्यों पूछता है बात ये उसकी |
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आईने में
आईने में गर दुनिया को देखो तो उल्टी नज़र आती है |
आईने के सामने आईना रख दो तो सीधी नज़र आती है |
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