रविवार, 28 अगस्त 2011

तुख्लिसें तेरी

तेरा हुश्न आज बाज़ार में बिकने आया,
कोई खरीददार न मिला, मैं ताकने आया,
किस की नज़र तुझपर पड़ेगी, देखने आया,
कौन तुझे ले जाएगा, जानने मैं आया,

अब तो मैं ही तुझे खरीद लेता हूँ,
बना गुलाम हरम में जगह देता हूँ,
कोई और कितनी ही बोली लगाए,
तुझे किसी के पास न जाने देता हूँ,

यह रवायियत, हुश्न की मैंने जो देखी,
उसपर फ़िदा हो, यूँ अपनाने की सूझी,
न यूँ अब शरमा, मेरी ख्वाबोगाह में,
रह अब बेपरदा, मेरी आरामगाह में,

तुख्लिसें तेरी आखें, कितनी गहरी हैं,
मुफ्लिसें तेरी निगाहें, क्या कहती हैं,
ओठों को अब कपकपाने दे, न रोक,
गालों में गुलाबियत आने दे, न रोक,

तुझे पाकर, जिन्दगी भूल गया मैं,
दोस्त-दुश्मन-दुनिया भूल गया मैं,
अब तो तेरे आगोश में, सोता हूँ मैं,
न रोता न जागता, सब खोता हूँ मैं,

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