शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

अँधेरा था

अँधेरा था,
घुप्प अँधेरा था,
कुछ सूझ नहीं रहा था,
कोई पुकार नहीं रहा था,

कदम कैसे उठाऊँ,
क्या पता,
आगे क्या हो,
कदम रखते ही,
कुछ बाला हो,

वहीँ धीरे से बैठ गया,
अँधेरा छटने का इंतज़ार करने लगा,

अँधेरा छटा,
सब कुछ दिखा,
जहाँ में बैठा था,
वही मकाँ सबसे अच्छा दिखा,

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