चन्द इशहार
इश्क में हारे हुए के, चन्द जख्म, कुरेदते रहते हैं, न लगाते मरहम,
शनिवार, 27 अगस्त 2011
अह्सासे-हुज़ुरियत
अह्सासे-हुज़ुरियत का इन्तखाब,
बज्में खायियत की जिन्दगी न थी,
उस रूह न निकली हर नज़्म,
तेरी नजरियत की जिन्दगी न थी,
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