शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

धीरे-धीरे

धीरे-धीरे,
वो चली आ रही थी,
सड़क पर,
नंगे पाँव,
सलवार हांथों में पकडे थी,

सर पर न छाता था,
न रेन कोट पहने थी,
सफ़ेद लिबास में,
मासूम सी लग रही थी,

हलकी सी बारिश हो रही थी,
पता नहीं कहाँ जा रही थी,
ईधर-उधर उसकी नज़र थी,
शायद ज़माने की आखें पड़ रही थी,

बस ये नजारा देखा,
उसको यूँ गुज़रते देखा,
नंगे पाँव सड़क पर,
एक ख़ूबसूरत हसीना को,
चलते हुए देखा,

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