शमाँ ने सताया सबको,
पास बुलाकर जलाया सबको,
परवानों के जिस्म से,
लौ को अपनी बढाया जबसे,
तभी तो शायद,
ये शमायें इतनी चमकती हैं,
परवानों की रूह से,
इनकी रूह चमकती है,
इतराती हैं, बलखाती हैं,
परवाने गर न जलें,
ये तो कब की,
बुझ जाती हैं,
शुक्र है परवानों का,
उपकार इन पर कर जाते,
इनकी मोहब्बत में,
जिस्म अपना सौंप जाते,
.
पास बुलाकर जलाया सबको,
परवानों के जिस्म से,
लौ को अपनी बढाया जबसे,
तभी तो शायद,
ये शमायें इतनी चमकती हैं,
परवानों की रूह से,
इनकी रूह चमकती है,
इतराती हैं, बलखाती हैं,
परवाने गर न जलें,
ये तो कब की,
बुझ जाती हैं,
शुक्र है परवानों का,
उपकार इन पर कर जाते,
इनकी मोहब्बत में,
जिस्म अपना सौंप जाते,
.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें