गुरुवार, 15 सितंबर 2011

मेरी आरज़ू

कोई न था, बस मेरी आरज़ू थी,
तुझसे हो मुलाकात, तमन्ना थी,
तेरे दिल में मेरे लिए कुछ हुआ,
यूँ दिल तेरा बात करने को हुआ,

न रोकना अब इन जज्बातों को,
बहने देना इन अरमानों को,
दूर है तो क्या बात है,
दिल से दिल जुड़ा, यही बात है,

संग जब दिल धडकता है,
धडकते-धडकते बहुत कुछ कहता है,
हमारे अरमानों को एक करता है,
फिर न कहे भी सब पता चलता है,

यही तो मोहब्बत है, मेरी जान,
मोह में बंध कर चली गयी जान,
न छिपाना अब मुझसे मेरी जान,
जानता तो पहले था, तू ही है मेरी जान,


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