चमकते सितारों की रात में,
खुले आसमान के नीचे,
बैठा था मैं तन्हा,
सन्नाटा था चरों ओर,
घुप्प अँधेरी रात में,
बैठा था मैं तन्हा,
इतना अकेला,
कि गुफ्तगू करून किससे,
कोई न पास है,
बात करून किससे,
यूँ ही बैठे-बैठे,
इक रौशनी-सी होने लगी,
अब कुछ दिखने-सा लगा,
तन्हाई अब खोने लगी,
.
खुले आसमान के नीचे,
बैठा था मैं तन्हा,
सन्नाटा था चरों ओर,
घुप्प अँधेरी रात में,
बैठा था मैं तन्हा,
इतना अकेला,
कि गुफ्तगू करून किससे,
कोई न पास है,
बात करून किससे,
यूँ ही बैठे-बैठे,
इक रौशनी-सी होने लगी,
अब कुछ दिखने-सा लगा,
तन्हाई अब खोने लगी,
.
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