गुरुवार, 22 सितंबर 2011

उठती-सी नज़र


फ़क्त,
उठती-सी नज़र,
कुछ कह-सा गयी,
उसकी आखों की चमक,
कुछ कह-सा गयी,

दिया मेरे,
दिल को जला,
रोशनी,
अब हो सी गयी,

राह न दिखती थी तब,
अब तो कायनात रोशन हो गयी,
इस रोशन जहाँ में,
अब राहें बहुत हैं,
डर नहीं,
खौफ नहीं,
बाहें बहुत हैं,

वो सामने खड़ी है,
मंद-मंद मुस्कान लिए,
आखें खुली हैं,
तक रहीं मुझे,

कदम उठा,
धीरे से बड़ा,
तेजी से दौड़ा,
ठिठक गया,
अचानक,
कुछ ख्याल आया,
फिर वो जज्बा न बन पाया,

मुड़ा,
कदम वापिस रखे,
उसकी आखों की,
गमगीनी न देख पाया,
प्यार की जगह,
इज्ज़त का ख्याल आया,

कुछ दिन के बाद,
उसके घर,
शादी का पैगाम भिजवाया,
आज उसके साथ,
अपना घर बसाया,

.

2 टिप्‍पणियां:

  1. अगर आपकी उत्तम रचना, चर्चा में आ जाए |

    शुक्रवार का मंच जीत ले, मानस पर छा जाए ||


    तब भी क्या आनन्द बांटने, इधर नहीं आना है ?

    छोटी ख़ुशी मनाने आ, जो शीघ्र बड़ी पाना है ||

    चर्चा-मंच : 646

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  2. बढ़िया रचना | चर्चा मंच से आप तक पंहुचा | बधाई |

    मेरे ब्लॉग में भी आपका सादर आमंत्रण है |
    **मेरी कविता**

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