जिगर-ए-हालत तू क्या जाने,
ज़ख्मों की बात तू क्या जाने,
नासूर हूँ मैं दिल का तेरे,
रिस-रिस कर रिश्ता ही रहूँगा,
इसी से रिश्ता बनाकर रखूँगा,
तुझे इसी तरह सताता रहूँगा,
तुझे इसी तरह जताता रहूँगा,
तुझे इसी तरह याद आता रहूँगा,
.
ज़ख्मों की बात तू क्या जाने,
नासूर हूँ मैं दिल का तेरे,
रिस-रिस कर रिश्ता ही रहूँगा,
इसी से रिश्ता बनाकर रखूँगा,
तुझे इसी तरह सताता रहूँगा,
तुझे इसी तरह जताता रहूँगा,
तुझे इसी तरह याद आता रहूँगा,
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