सोमवार, 26 सितंबर 2011

मत पूछ यार

मत पूछ यार,
आज क्या हुआ,

उसकी पड़ती-सी नज़र,
उसकी लगती-सी नज़र,
उसकी घुसती-सी नजर,
उसकी पलटी-सी नज़र,

काफी दिन के बाद,
नज़रें जो मिलीं थीं,
मेरे आने से,
सकपका वो गयी थीं,

काबू में उसका,
दिल-दिमाग न था,
नज़र कहीं तो,
दिमाग कहीं था,

दिल धडकता था,
उसका जोर-जोर से,
साँसें भी वह,
संभालती थी बड़ी मुस्किल से,

कभी-भीतर,
कभी बाहर,
चक्कर काटती थी,
मुझे भी ताकती थी,

पर क्या बताऊँ,
वहाँ भीड़ बहुत थी,
शक भरी निगाहें,
सब ओर थीं,

उसके भी रुतबे का,
ख्याल रखना था,
सरे आम उसको,
न बदनाम करना था,

उसने अपने दिल की,
दिल में रख ली,
मैंने भी अपने दिल की,
दिल में रख ली,

पर निगाहों ने हमारी,
बहुत-सी बातें कर ली,
कुछ उसने मेरी सुन ली,
कुछ मैंने उसकी सुन ली,

सुकून अब मिल गया,
दिल अब खुश हो गया,
आज उनका दीदार हो गया,
ख़त्म इंतज़ार हो गया,

हम तो सोचते थे,
वो यहाँ से चले गए होंगे,
क्या पता इस जिन्दगी में,
दीदार उनके दुबारा कब होंगे,

उनके चेहरे और आँखों से,
ऐसा महसूश हो रहा था,
उन पर भी इस मुलाक़ात से,
दिल-ए-सुकून झलक रहा था,

.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें