रविवार, 25 सितंबर 2011

कहते-कहते

कुछ कहते-कहते रुक-सी गयी,
आँख मिलाते-मिलाते झेंप-सी गयी,
आगे आते-आते पलट-सी गयी,
फिर न जाने क्यूँ दौड़-सी गयी,

आज तक न समझ पाया, माजरा क्या था,
फिर कभी न मिल पाया, काजरा क्या था,


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