बुधवार, 3 अगस्त 2011

उस दिन

बात उस दिन की है,
जब आँख पहली बार मिली थी,
हाँ वो अपनी सहेली के संग थी,
कनखियों से देख रही थी,
आगे को चल रही थी,

फिर उसके बाद सिलसिला सा शुरू हो गया,
मैं उसके पीछे दीवाना सा हो गया,
रोज़ उसी सड़क पर आना-जाना हो गया,
अब तो नैनो से नैन बतियाना हो गया,

आखों ने जब पड़ ली आखों की बोली,
फिर एक दिन वो बोली,
जरा इधर तो आओ,
कोन हो बताओ,

आज में तुम्हारी शिकायत भाई से करती हूँ,
घूरते हो तुम मुझे, तुम पर न मरती हूँ,
मेरा तो कोई और है,
तुम से पुरजोर है,

जला रही है, समझ गया,
इम्तिहान का वक्त है, समझ गया,
उससे कुछ न बोला,
अपना मुंह न खोला,

हंल्का सा मुस्कुरा दिया,
एक तरफ चल दिया,
उसे कुछ वक्त दिया,
आज न कुछ किया,

बस हम निकल लिए,
अपने दिल को थाम लिए,
अब उसकी बैचैनी थी,
रोज़ राह पर नैनी थी,

कुछ दिन निकल गए,
उसके अरमाँ मचल गए,
सही ये वक्त था,
मैं कुछ सख्त था,

उससे अनजान अपनी राह चला,
उसे देखे बिना अनमना चला,
वो अब भी चल रही थी,
अपनी राह छोड़, मेरी राह पर चल रही थी,

पीछे से उसने, हाथ पकड़ा,
दिया मुझे एक, लफड़ा,
यूँ वो लिपट गयी,
सरे बाज़ार यूँ पट गयी,

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