बुधवार, 13 जुलाई 2011

वजह: फरमाया

वजह: फरमाया आपने, ये तो न सोचा था ख्वाब में |
गर यूँ ही सेहरे सजते रहे, बकरे यूँ ही कटते रहे |
कोई न फिर साजदार होगा, उसका न कोई राजदार होगा |
पर जिन्दगी का एक उसूल है, करो तो कुबूल है |

सेहरा ही जिन्दगी को सवाँर देता है |
गवाँर को एक प्यार देता है |
किसी को एक दुलार देता है |
उनको एक मुनार देता है |

अभी तो लग रहा है की, जिन्दगी छूट रही है |
पर जिन्दगी का तजुर्बा देता है |
जिन्दगी को जीने का सलीका देता है |
जिन्दगी को जानने वजीफा देता है |

गर कोई छलांग मारकर, निकल जाता है सेहरे के फूलों से |
तो वह रह जाता है महरूम, जिन्दगी के कुछ नजारों से |
तो जिन्दगी में काटकर जाना ही, बेहतर है |
कम-से-कम फिर तो वापस लौटना पड़ेगा, सबकुछ सहकर |

1 टिप्पणी:

  1. गर कोई छलांग मारकर, निकल जाता है सेहरे के फूलों से |
    तो वह रह जाता है महरूम, जिन्दगी के कुछ नजारों से |
    bahut khoob ....aabhar

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