बुधवार, 27 जुलाई 2011

गुस्तगुल न

गुस्तगुल न हुआ, मजारे प्यार का |
ऐतबार तो लिख दिया, मेरे यार का |
हूँ फ़ना उसके, जानिबे दीदार का |
न इज़हार कर यूँ, अपने प्यार का |

फासिबे मोहब्बत अब क्यूँ अफसाना हुआ |
नूर-ए-हलक तेरा हुश्न अब क्यूँ दीवाना हुआ |
बेवक्ते तेरे दर पे उसका, यूँ आना क्यूँ हुआ |
हालिबे उसके मजार पे, यूँ जाना क्यूँ हुआ |

इदरिसे हसन्नुम, उसका तरन्नुम, क्या सुना |
वक्त-ए-हाल, मुनासिब ख्याल, उसका क्या सुना |
आदिसे हलक का, उसका हलकान क्या सुना |
सुर-ए-नाज़ुक, गले की सुरमाई, उसका क्या सुना |

दरीबे का आईना, जिन्दगी के तजुर्बे से निखरा |
उसको देखते हुए, जिन्दगी का तजुर्बा तिलखा |
हंसी आती, निगाहें चुराती, जान गयी फलखा |
आबे दयार से निकला, जब उसका यह तलबा |


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