चन्द इशहार
इश्क में हारे हुए के, चन्द जख्म, कुरेदते रहते हैं, न लगाते मरहम,
शनिवार, 30 जुलाई 2011
रफ्त्गुल हुश्न
रफ्त्गुल हुश्न यूँ बेपर्दा नहीं होता |
गर तू आखों से पहचानता होता |
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