सुगंधा मिश्रा को एक तोहफा
Sugandha Mishra
Sugandha Mishra
तेरी खनकती आवाज़, रूह में समाँ गयी || १ ||
मुद्दत से उदास बैठा था, किसी के न पास बैठा था |
कानों में कहीं दूर से, एक सुरीला नगमा गूँजा था |
यूँ ही सुनते-सुनते धीरे-धीरे खुमार चड़ने लगा था |
उठा ढूँढा तो पता चला तेरा नगमा ही बज रहा था || २ ||
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