लहजा-ए-तारुफ़, आपका यूँ भा गया,
नाज़ुक अंदाज़ आपका पसंद आ गया,
कितनी मासूम, कितनी ज़हीन,
नाज़ुक अदा आपकी है,
कितनी महीन, कितनी हसीन,
यह नजाकत आपकी है,
हर दूरियाँ मिटाकर,
आपके दिल तक पहुँचे हैं,
हम मिट-मिट कर,
आपके दिल तक पहुँचे हैं,
परदानसी आप हुए, याद पुराना जमाना आ गया,
नजाकत परदे में ही होती है, आज समझ आ गया,
गर आपसे जुबान में, यूँ कहना हो तो, यूँ रूबरू होना पड़ेगा,
हो तो जाएँ रूबरू आपके, पर हमें देख आपको रोना पड़ेगा,
.
नाज़ुक अंदाज़ आपका पसंद आ गया,
कितनी मासूम, कितनी ज़हीन,
नाज़ुक अदा आपकी है,
कितनी महीन, कितनी हसीन,
यह नजाकत आपकी है,
हर दूरियाँ मिटाकर,
आपके दिल तक पहुँचे हैं,
हम मिट-मिट कर,
आपके दिल तक पहुँचे हैं,
परदानसी आप हुए, याद पुराना जमाना आ गया,
नजाकत परदे में ही होती है, आज समझ आ गया,
गर आपसे जुबान में, यूँ कहना हो तो, यूँ रूबरू होना पड़ेगा,
हो तो जाएँ रूबरू आपके, पर हमें देख आपको रोना पड़ेगा,
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