चन्द इशहार
इश्क में हारे हुए के, चन्द जख्म, कुरेदते रहते हैं, न लगाते मरहम,
सोमवार, 21 नवंबर 2011
वो बड़ते से
वो बड़ते से कदम रुक-रुक जाते हैं,
जाने-पहचाने नतीजे से डर जाते हैं,
दिल के अरमान दिल में रह जाते हैं,
ओंठ तक आकर रुक-रुक जाते हैं,
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