गुरुवार, 10 नवंबर 2011

वो ऐसे शरमाई

पोपटलाल -

वो ऐसे शरमाई, दिल में उतरती आई,
बुझी आस जगाई, पोपट की होने आई,

दुश्मनी को मिटाने चल दिया, दोस्त को मनाने चल दिया,
इनको पटाने के लिए, पोपट दुश्मनी को भुलाने चल दिया,

अपनी ही तारीफ़ अपने ही मुँह से कर रहे हैं,
पोपट का नाम यथार्थ में साबित कर रहे हैं,

अब काम में अडंगा न डालो, बना बनाया काम न बिगाड़ो,
तुम्हारे मंसूबे को गर जान गए, तुम्हारे फिर तोते उड़ गये,

दिल पर थोडा काबू रखो,
यूँ न बेकाबू रखो,
बात उनको अपनी कहने दो,
बड़े दिन के बाद दोस्त से मिलने दो,

वो किसी और की निकलीं, नज़र उन पर मेरी फिसली,
अब कैसे मुँह छुपाऊं, ठहरूं या शर्म के मारे भाग जाऊं,

उसको उसकी कर दिया, जिसके नसीब की थी,
मेरी जिन्दगी खाली रही, जो मेरे नसीब की थी,

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