बुधवार, 23 नवंबर 2011

हालात-ए-वक्त

हालात-ए-वक्त, बहुत बेरहम होते हैं, लोग,
भरी महफ़िल में यूँ तन्हा कर देते हैं, लोग,

भरी महफ़िल में उसका रुसवा होना,
एक कोना पकड़कर उसका रोना,
आंसुओं से आँखें उसकी नम होना,
पोंछकर आंसुओं को मुँह धोना,

आईना न दिखा रोनी सूरत तेरी,
सूजी हुई वो आँखें तेरी,
पल-पल लम्हा खो रहा है,
जी महफ़िल से जाने का हो रहा है,

कोई तो मुन्तज़र न था, मेरी तन्हाई का,
तन्हा मैं रह गया, बिन रहनुमाई का,

हर हाल-ए-वक्त का ये हाल था,
भूला न वो उसकी चाल था,
जहन को जहन रहने दिया था,
जज़्बात को न कहने दिया था,

हर हाल में, वक्त के बदलते मिजाज़ में,
लोगों के बदलते स्वाद में, जिन्दगी के हर हालात में,

.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें