वो आखिरी लम्हा,
आखें बंद हो रही थीं,
जिन्दगी थी तन्हा,
सासें मंद हो रही थीं,
गहरी-गहरी साँसों में,
लम्बी-लम्बी साँसों में,
सामने थी निगाहों में,
बंद होती धडकनों में,
इक-इक धड़कन,
तेरी राह तक रही थी,
इक-इक सांस,
तेरे नाम से चल रही थी,
पलकें ने बंद हुईं थीं,
बाट तेरी जोह रही थीं,
आँखें दरवाजे पर थीं,
बंद न हो रही थीं,
अकेले न थे, लोग वहाँ बहुत थे,
सब के सब बेचैन थे, भरे हुए नैन थे,
एक तेरा आना बाकी रहा था,
दिल अभी तक धड़क रहा था,
तेरे आने की आस कर रहा था,
इसी उम्मीद में धड़क रहा था,
तू बहुत दूर तो न रह रही थी,
फिर क्यूँ इतनी देर कर रही थी,
दिल की धड़कन छूट रही थी,
तेरे आने की उम्मीद न टूट रही थी,
आह तू आ गई, पर क्यूँ निगाह फेर गई,
पास तू आ मेरे, रख हाथों में हाथ मेरे,
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बुधवार, 30 नवंबर 2011
रविवार, 27 नवंबर 2011
गुरुवार, 24 नवंबर 2011
ये आँखों से
ये आँखों से आँखें मिलाते जाना,
आखों से आखों में उतरते जाना,
इसका उसमे समाते जाना,
उसका इसमें समाते जाना,
बारिश का आते जाना,
भीगा-भीगा दिल करते जाना,
पल-पल को पलकों में समाना,
दोनों की पलकों का थम जाना,
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आखों से आखों में उतरते जाना,
इसका उसमे समाते जाना,
उसका इसमें समाते जाना,
बारिश का आते जाना,
भीगा-भीगा दिल करते जाना,
पल-पल को पलकों में समाना,
दोनों की पलकों का थम जाना,
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हम आपकी तन्हाईओं
हम आपकी तन्हाईओं में आपका साथ न दे सके,
अपनी तन्हाईओं से फुर्सत जो न पा सके,
कैसे कहें की रुशवाईओं को गम-ए-बेजार का जाते,
हम रोते और आपको किसी तरह हंसा जाते,
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अपनी तन्हाईओं से फुर्सत जो न पा सके,
कैसे कहें की रुशवाईओं को गम-ए-बेजार का जाते,
हम रोते और आपको किसी तरह हंसा जाते,
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बुधवार, 23 नवंबर 2011
हालात-ए-वक्त
हालात-ए-वक्त, बहुत बेरहम होते हैं, लोग,
भरी महफ़िल में यूँ तन्हा कर देते हैं, लोग,
भरी महफ़िल में उसका रुसवा होना,
एक कोना पकड़कर उसका रोना,
आंसुओं से आँखें उसकी नम होना,
पोंछकर आंसुओं को मुँह धोना,
आईना न दिखा रोनी सूरत तेरी,
सूजी हुई वो आँखें तेरी,
पल-पल लम्हा खो रहा है,
जी महफ़िल से जाने का हो रहा है,
कोई तो मुन्तज़र न था, मेरी तन्हाई का,
तन्हा मैं रह गया, बिन रहनुमाई का,
हर हाल-ए-वक्त का ये हाल था,
भूला न वो उसकी चाल था,
जहन को जहन रहने दिया था,
जज़्बात को न कहने दिया था,
हर हाल में, वक्त के बदलते मिजाज़ में,
लोगों के बदलते स्वाद में, जिन्दगी के हर हालात में,
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भरी महफ़िल में यूँ तन्हा कर देते हैं, लोग,
भरी महफ़िल में उसका रुसवा होना,
एक कोना पकड़कर उसका रोना,
आंसुओं से आँखें उसकी नम होना,
पोंछकर आंसुओं को मुँह धोना,
आईना न दिखा रोनी सूरत तेरी,
सूजी हुई वो आँखें तेरी,
पल-पल लम्हा खो रहा है,
जी महफ़िल से जाने का हो रहा है,
कोई तो मुन्तज़र न था, मेरी तन्हाई का,
तन्हा मैं रह गया, बिन रहनुमाई का,
हर हाल-ए-वक्त का ये हाल था,
भूला न वो उसकी चाल था,
जहन को जहन रहने दिया था,
जज़्बात को न कहने दिया था,
हर हाल में, वक्त के बदलते मिजाज़ में,
लोगों के बदलते स्वाद में, जिन्दगी के हर हालात में,
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मंगलवार, 22 नवंबर 2011
निशानी तू न
निशानी तू न दे, तो भी मैं बना लूँगा,
दिल पे, तेरे नाम की चीर लगा लूँगा,
रोज़-रोज़ कुरेदूँगा, लहू यूँ बहा लूँगा,
बहते लहू से नाम यूँ तेरा लिख लूँगा,
.
दिल पे, तेरे नाम की चीर लगा लूँगा,
रोज़-रोज़ कुरेदूँगा, लहू यूँ बहा लूँगा,
बहते लहू से नाम यूँ तेरा लिख लूँगा,
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वो राज़-ए-जेहर
वो राज़-ए-जेहर न रख पाया, मेरी बात सारे जहाँ से कह आया,
राज तो उसको दिल का बतलाया, दिल में उसके न समां पाया,
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राज तो उसको दिल का बतलाया, दिल में उसके न समां पाया,
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सोमवार, 21 नवंबर 2011
वो बड़ते से
वो बड़ते से कदम रुक-रुक जाते हैं,
जाने-पहचाने नतीजे से डर जाते हैं,
दिल के अरमान दिल में रह जाते हैं,
ओंठ तक आकर रुक-रुक जाते हैं,
.
जाने-पहचाने नतीजे से डर जाते हैं,
दिल के अरमान दिल में रह जाते हैं,
ओंठ तक आकर रुक-रुक जाते हैं,
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बुधवार, 16 नवंबर 2011
तारीफ़-ए-नज़र
तारीफ़-ए-नज़र ये तेरी नज़र कुछ इशारा, उधर कर रही है,
देख किसी के बहाने किसी और को नज़र इशारा कर रही है,
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देख किसी के बहाने किसी और को नज़र इशारा कर रही है,
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इस शायर को
चंद्रमुखी चौटाला -
इस शायर को कुछ और न समझ लेना,
वो खुदा की इबादत करता है, उसे अपना न समझ लेना,
उसकी शायरी बनते-बनते बन जाती है,
इबादत गहरी होती जाती है, शायरी खुद-ब-खुद उतरती आती है,
जज्बातों को उसने दिल ही दिल में समेट लिया है,
बस चन्द लफ़्ज़ों में बयाँ जज्बातों को कर दिया है,
मंजिल-ए-आखिर उसकी कहीं और है,
आपकी अदाकारी में खुदा की डोर है,
जिन्दगी के हालात से दूर, अपनी जिन्दगी में ही रहता है,
तन्हाई में खुदा में खोया रहता है,
.
इस शायर को कुछ और न समझ लेना,
वो खुदा की इबादत करता है, उसे अपना न समझ लेना,
उसकी शायरी बनते-बनते बन जाती है,
इबादत गहरी होती जाती है, शायरी खुद-ब-खुद उतरती आती है,
जज्बातों को उसने दिल ही दिल में समेट लिया है,
बस चन्द लफ़्ज़ों में बयाँ जज्बातों को कर दिया है,
मंजिल-ए-आखिर उसकी कहीं और है,
आपकी अदाकारी में खुदा की डोर है,
जिन्दगी के हालात से दूर, अपनी जिन्दगी में ही रहता है,
तन्हाई में खुदा में खोया रहता है,
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मंगलवार, 15 नवंबर 2011
जब वो लौट
जब वो लौट के आये, अपनी महफ़िल में,
तो अपनी महफ़िल भी बेगानी लगती थी,
चेहरे अलग लगते थे, मोहरे अलग लगते थे,
जाने पहचाने लोग भी, अचरज से घूरते थे,
क्या यह वह जगह थी, जो छोड़ कर गया था,
या फिर कोई और जगह, जहां मैं आ गया था,
इनसे भी दूर हो गया था, उनसे भी दूर हो गया था,
मशगूल कहीं हो गया था, मशहूर पर हो गया था,
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तो अपनी महफ़िल भी बेगानी लगती थी,
चेहरे अलग लगते थे, मोहरे अलग लगते थे,
जाने पहचाने लोग भी, अचरज से घूरते थे,
क्या यह वह जगह थी, जो छोड़ कर गया था,
या फिर कोई और जगह, जहां मैं आ गया था,
इनसे भी दूर हो गया था, उनसे भी दूर हो गया था,
मशगूल कहीं हो गया था, मशहूर पर हो गया था,
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शनिवार, 12 नवंबर 2011
शुक्र है उस
शुक्र है उस वक्त का जो बीतते-बीतते बीत गया,
अब भी तन्हाई में न जाने कितनी रौशनी दे गया,
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अब भी तन्हाई में न जाने कितनी रौशनी दे गया,
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गर तन्हाईयाँ
गर तन्हाईयाँ साथ न देती, हम इतना न लिख पाते,
सोचते-सोचते थक जाते, पर इतना दर्द न भर पाते,
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सोचते-सोचते थक जाते, पर इतना दर्द न भर पाते,
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कितना दर गुज़रा
कितना दर गुज़रा उसके दिल से,
तब तो वह शायर बना होता,
न गुज़रा होता ग़मों की गलियों से,
तो शायद कायर बना होता,
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तब तो वह शायर बना होता,
न गुज़रा होता ग़मों की गलियों से,
तो शायद कायर बना होता,
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कोई कह
कोई कह जाता है, आँखों से,
कोई सुन जाता है, कानों से,
यह तो मोहब्बत है,
हर कोई गुज़र जाता है, इन राहों से,
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कोई सुन जाता है, कानों से,
यह तो मोहब्बत है,
हर कोई गुज़र जाता है, इन राहों से,
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आँखें कह रही
आँखें कह रही हैं, इकरार को,
ओंठ कह रहे हैं, इनकार को,
क्या समझे तेरे प्यार को,
दिल में ही रहने दूं इशरार को,
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ओंठ कह रहे हैं, इनकार को,
क्या समझे तेरे प्यार को,
दिल में ही रहने दूं इशरार को,
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वो तारीफ़ भी
वो तारीफ़ भी करते हैं,
पता भी नहीं बताते हैं,
दिल में उतरते जाते हैं,
अहसाश भी न जताते हैं,
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पता भी नहीं बताते हैं,
दिल में उतरते जाते हैं,
अहसाश भी न जताते हैं,
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शुक्रवार, 11 नवंबर 2011
वो शुबः कर
वो शुबः कर बैठे, क्या ये बात हम उनके लिए कह बैठे,
सोचने लग गए, क्या कोई न कहने वाली बात कह बैठे,
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सोचने लग गए, क्या कोई न कहने वाली बात कह बैठे,
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गुरुवार, 10 नवंबर 2011
वो ऐसे शरमाई
पोपटलाल -
वो ऐसे शरमाई, दिल में उतरती आई,
बुझी आस जगाई, पोपट की होने आई,
दुश्मनी को मिटाने चल दिया, दोस्त को मनाने चल दिया,
इनको पटाने के लिए, पोपट दुश्मनी को भुलाने चल दिया,
अपनी ही तारीफ़ अपने ही मुँह से कर रहे हैं,
पोपट का नाम यथार्थ में साबित कर रहे हैं,
अब काम में अडंगा न डालो, बना बनाया काम न बिगाड़ो,
तुम्हारे मंसूबे को गर जान गए, तुम्हारे फिर तोते उड़ गये,
दिल पर थोडा काबू रखो,
यूँ न बेकाबू रखो,
बात उनको अपनी कहने दो,
बड़े दिन के बाद दोस्त से मिलने दो,
वो किसी और की निकलीं, नज़र उन पर मेरी फिसली,
अब कैसे मुँह छुपाऊं, ठहरूं या शर्म के मारे भाग जाऊं,
उसको उसकी कर दिया, जिसके नसीब की थी,
मेरी जिन्दगी खाली रही, जो मेरे नसीब की थी,
.
वो ऐसे शरमाई, दिल में उतरती आई,
बुझी आस जगाई, पोपट की होने आई,
दुश्मनी को मिटाने चल दिया, दोस्त को मनाने चल दिया,
इनको पटाने के लिए, पोपट दुश्मनी को भुलाने चल दिया,
अपनी ही तारीफ़ अपने ही मुँह से कर रहे हैं,
पोपट का नाम यथार्थ में साबित कर रहे हैं,
अब काम में अडंगा न डालो, बना बनाया काम न बिगाड़ो,
तुम्हारे मंसूबे को गर जान गए, तुम्हारे फिर तोते उड़ गये,
दिल पर थोडा काबू रखो,
यूँ न बेकाबू रखो,
बात उनको अपनी कहने दो,
बड़े दिन के बाद दोस्त से मिलने दो,
वो किसी और की निकलीं, नज़र उन पर मेरी फिसली,
अब कैसे मुँह छुपाऊं, ठहरूं या शर्म के मारे भाग जाऊं,
उसको उसकी कर दिया, जिसके नसीब की थी,
मेरी जिन्दगी खाली रही, जो मेरे नसीब की थी,
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सोमवार, 7 नवंबर 2011
एक माचिस
पोपट लाल -
एक माचिस तक, मोबाइल से मंगवाते हैं,
अपने को पत्रकार तक कहलवाते हैं,
कितना आलसी हो गए हैं,
किसी काम के न रह गए हैं,
एक हसीना का फोन आ गया,
काम अपना भूल गया,
भूँख भी अपनी भूल गया,
हसीना को अपना बनाने में लगा गया,
कहाँ से कहाँ बात लड़ा रहा है,
एक तीर से तो निशान लगा रहा है,
बात-बात में उसे पटा रहा है,
अपनी बात, बात-बात में बता रहा है,
झटका वो खायेगा,
जब असलियत वो जान जाएगा,
उस हसीना को एक,
कातिल हसीना जब को पायेगा,
.
एक माचिस तक, मोबाइल से मंगवाते हैं,
अपने को पत्रकार तक कहलवाते हैं,
कितना आलसी हो गए हैं,
किसी काम के न रह गए हैं,
एक हसीना का फोन आ गया,
काम अपना भूल गया,
भूँख भी अपनी भूल गया,
हसीना को अपना बनाने में लगा गया,
कहाँ से कहाँ बात लड़ा रहा है,
एक तीर से तो निशान लगा रहा है,
बात-बात में उसे पटा रहा है,
अपनी बात, बात-बात में बता रहा है,
झटका वो खायेगा,
जब असलियत वो जान जाएगा,
उस हसीना को एक,
कातिल हसीना जब को पायेगा,
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लहजा-ए-तारुफ़
लहजा-ए-तारुफ़, आपका यूँ भा गया,
नाज़ुक अंदाज़ आपका पसंद आ गया,
कितनी मासूम, कितनी ज़हीन,
नाज़ुक अदा आपकी है,
कितनी महीन, कितनी हसीन,
यह नजाकत आपकी है,
हर दूरियाँ मिटाकर,
आपके दिल तक पहुँचे हैं,
हम मिट-मिट कर,
आपके दिल तक पहुँचे हैं,
परदानसी आप हुए, याद पुराना जमाना आ गया,
नजाकत परदे में ही होती है, आज समझ आ गया,
गर आपसे जुबान में, यूँ कहना हो तो, यूँ रूबरू होना पड़ेगा,
हो तो जाएँ रूबरू आपके, पर हमें देख आपको रोना पड़ेगा,
.
नाज़ुक अंदाज़ आपका पसंद आ गया,
कितनी मासूम, कितनी ज़हीन,
नाज़ुक अदा आपकी है,
कितनी महीन, कितनी हसीन,
यह नजाकत आपकी है,
हर दूरियाँ मिटाकर,
आपके दिल तक पहुँचे हैं,
हम मिट-मिट कर,
आपके दिल तक पहुँचे हैं,
परदानसी आप हुए, याद पुराना जमाना आ गया,
नजाकत परदे में ही होती है, आज समझ आ गया,
गर आपसे जुबान में, यूँ कहना हो तो, यूँ रूबरू होना पड़ेगा,
हो तो जाएँ रूबरू आपके, पर हमें देख आपको रोना पड़ेगा,
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शुक्रवार, 4 नवंबर 2011
यूँ अहसास तो
यूँ अहसास तो बहुत था,
उसका दिल जो दुखाया था,
पर क्या करें उस वक्त,
कुछ समझ न आया था,
उसकी उन बातों में वो चिड सी थी
जैसे शिकायत नहीं इड सी थी,
न अब दिल न रख सकेंगे उसका,
अब सुख न दे सकेंगे उसका,
इक बार जो निकल गया जबान से,
अब वापस न ले सकेंगे, उसका,
यही तो हमारी मोहब्बत का पैगाम है,
उसको दूर अब कर दिया है,
अपने दिल से भी निकाल दिया है,
तन्हाई में अब रहने की फरमाईश है,
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उसका दिल जो दुखाया था,
पर क्या करें उस वक्त,
कुछ समझ न आया था,
उसकी उन बातों में वो चिड सी थी
जैसे शिकायत नहीं इड सी थी,
न अब दिल न रख सकेंगे उसका,
अब सुख न दे सकेंगे उसका,
इक बार जो निकल गया जबान से,
अब वापस न ले सकेंगे, उसका,
यही तो हमारी मोहब्बत का पैगाम है,
उसको दूर अब कर दिया है,
अपने दिल से भी निकाल दिया है,
तन्हाई में अब रहने की फरमाईश है,
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चंद्रमुखी चौटाला
चंद्रमुखी चौटाला
हर हायनेश शहजादी-ए-फेकबुक पिंकी प्रिंसेस को शहजादा-ए-मण्डोर पप्पू परिहार का सलाम,
पिंकी प्रिंसेस क्या नाम चुना है, लगा गया चंद्रमुखी पर चाँद कई गुना है,
हमें तो शुरू से ही अंदेशा हुआ है, आप शहजादी हो आज खुलाशा हुआ है,
आपकी अकड़ शहजादियों से कतई कम नहीं हैं,
आपकी पकड़ शहजादियों से कतई कम नहीं हैं,
चाँद जैसे मुख वाली कोई शहजादी ही हो सकती है,
शहजादी में ही तो इतनी अकड़-पकड़ हो सकती है,
चैटिंग से सेटिंग आप करा रहे हो,
फेक खाता फेकबुक में बना रहे हो,
चलो आप भी एक नए नाम से आ रहे हो,
फेकबुक पर असली पहचान छुपा रहे हो,
हमने तो आपको पहले दिन ही पहचान लिया था,
जब आपके अंदाज़ से अंदाजा जो लगा लिया था,
आप शहजादी हो यह जान लिया था,
आपने काबू में जो सबको कर लिया था,
राजकुमार का सफ़ेद जूता है हर फिल्म में पहले निकलता,
यूँ आपके जूता निकालने की अदा से अंदाजा यह निकलता,
वो राजकुमार हैं, तो आप राजकुमारी हैं,
आपकी यह अदा है लगे सबको प्यारी है,
पहले शो में आपकी वो आँखें, आपका नूर-ए-चेहरा,
शहजादी हो आप, आपके चेहरे का टपकता नूर कह रहा,
आपकी वो चाल, आपका वो अंदाज़,
शहजादी हो आप, सामने आ गया आज,
वो आपका डंडा, अभी न हुआ ठंडा,
अब तो लात घूसे बजते हैं, कभी-कभी डंडे भी लगते हैं,
हर किसी को डर लगता है, आपसे,
हर कोई दिल ही दिल में प्यार करता है, आपसे,
कह नहीं पाता कोई आपसे,
डर जो जाता है हर कोई, आपसे,
अब तो कोई शहजादा ही आएगा,
आपकी आँख से आँख मिलाएगा,
दिल में आपके उतर जाएगा,
आपके साथ दिल में बैठ जाएगा,
शहजादा ही तो शहजादी को पायेगा,
ऐरा-गैरा नत्थू खैरा कहाँ टिक पायेगा,
आपके निगाहों से जो टकराएगा,
चूर-चूर वो तो पहले ही हो जाएगा,
शहजादियों के नखरे, शहजादियों की समझ,
आपमें पहले दिन ही देख ली थी,
शहजादियों की चमक, शहजादियों की दमक,
आपमें पहले दिन ही देख ली थी,
पहले ही दिन से छा गए आप,
सबके दिल में समां गए आप,
हँसते-हँसाते जिन्दगी से रूबरू करा गए आप,
हंसी-हंसी में, बहुत कुछ सिखा गए आप,
अब तो आपको देखकर ही सोते हैं,
कितने भी थकें हो, हंसकर लोट-पोट होते हैं,
थकान छूमंतर हो जाती है,
वो भी आपको देख कर मुस्कुराती हैं,
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हर हायनेश शहजादी-ए-फेकबुक पिंकी प्रिंसेस को शहजादा-ए-मण्डोर पप्पू परिहार का सलाम,
पिंकी प्रिंसेस क्या नाम चुना है, लगा गया चंद्रमुखी पर चाँद कई गुना है,
हमें तो शुरू से ही अंदेशा हुआ है, आप शहजादी हो आज खुलाशा हुआ है,
आपकी अकड़ शहजादियों से कतई कम नहीं हैं,
आपकी पकड़ शहजादियों से कतई कम नहीं हैं,
चाँद जैसे मुख वाली कोई शहजादी ही हो सकती है,
शहजादी में ही तो इतनी अकड़-पकड़ हो सकती है,
चैटिंग से सेटिंग आप करा रहे हो,
फेक खाता फेकबुक में बना रहे हो,
चलो आप भी एक नए नाम से आ रहे हो,
फेकबुक पर असली पहचान छुपा रहे हो,
हमने तो आपको पहले दिन ही पहचान लिया था,
जब आपके अंदाज़ से अंदाजा जो लगा लिया था,
आप शहजादी हो यह जान लिया था,
आपने काबू में जो सबको कर लिया था,
राजकुमार का सफ़ेद जूता है हर फिल्म में पहले निकलता,
यूँ आपके जूता निकालने की अदा से अंदाजा यह निकलता,
वो राजकुमार हैं, तो आप राजकुमारी हैं,
आपकी यह अदा है लगे सबको प्यारी है,
पहले शो में आपकी वो आँखें, आपका नूर-ए-चेहरा,
शहजादी हो आप, आपके चेहरे का टपकता नूर कह रहा,
आपकी वो चाल, आपका वो अंदाज़,
शहजादी हो आप, सामने आ गया आज,
वो आपका डंडा, अभी न हुआ ठंडा,
अब तो लात घूसे बजते हैं, कभी-कभी डंडे भी लगते हैं,
हर किसी को डर लगता है, आपसे,
हर कोई दिल ही दिल में प्यार करता है, आपसे,
कह नहीं पाता कोई आपसे,
डर जो जाता है हर कोई, आपसे,
अब तो कोई शहजादा ही आएगा,
आपकी आँख से आँख मिलाएगा,
दिल में आपके उतर जाएगा,
आपके साथ दिल में बैठ जाएगा,
शहजादा ही तो शहजादी को पायेगा,
ऐरा-गैरा नत्थू खैरा कहाँ टिक पायेगा,
आपके निगाहों से जो टकराएगा,
चूर-चूर वो तो पहले ही हो जाएगा,
शहजादियों के नखरे, शहजादियों की समझ,
आपमें पहले दिन ही देख ली थी,
शहजादियों की चमक, शहजादियों की दमक,
आपमें पहले दिन ही देख ली थी,
पहले ही दिन से छा गए आप,
सबके दिल में समां गए आप,
हँसते-हँसाते जिन्दगी से रूबरू करा गए आप,
हंसी-हंसी में, बहुत कुछ सिखा गए आप,
अब तो आपको देखकर ही सोते हैं,
कितने भी थकें हो, हंसकर लोट-पोट होते हैं,
थकान छूमंतर हो जाती है,
वो भी आपको देख कर मुस्कुराती हैं,
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बुधवार, 2 नवंबर 2011
मंगलवार, 1 नवंबर 2011
वो हमसे दूरियां
वो हमसे दूरियां बना लेते हैं, न जाने क्यूँ मजबूरियां जता देते हैं,
पास जितना भी उनके जाओ, दूरियां फिर उतनी वो बना लेते हैं,
Vo Hamse Dooriyan Bana Lete Hain, Na Jaane Kyun Majbooriyaan Jata Dete Hain,पास जितना भी उनके जाओ, दूरियां फिर उतनी वो बना लेते हैं,
Paas Jitna Bhi Unke Jaao, Dooriyaan Fir Utni Vo Bana Lete Hain,
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