इश्क में हारे हुए के, चन्द जख्म,
कुरेदते रहते हैं, न लगाते मरहम,
बुधवार, 22 जून 2011
रोज़ ख्वाबों
ये वक्त कि फितरत है, कि तू मुझसे दूर है |
तेरा इक दीवाना, तेरे दिल के करीब है |
बातें होती हैं, रोज़ ख्वाबों में मुलाकातें होती हैं |
हाल-चाल पुछा जाता है, हंसी-ठिठोली होती है |
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