रविवार, 26 जून 2011

गुरुरे हुश्न

गुरुरे हुश्न, मैं तुझे ताकीद न कर पाया |
देखता रहा तुझे, तस्लीम न कर पाया |
खता माफ़ हो, या सजा दे दो |
पर नज़र न हटे तुझसे, ऐसी जगह दे दो |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें