चन्द इशहार
इश्क में हारे हुए के, चन्द जख्म, कुरेदते रहते हैं, न लगाते मरहम,
शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011
गुल नहीं
गुल नहीं खिला तो कलि का क्या कसूर है |
रुत नहीं आयी तो मौसम का क्या कसूर है |
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