सोमवार, 26 दिसंबर 2011

कुछ ताबीर करने

कुछ ताबीर करने को दिल अब करता नहीं,
बुझा-बुझा सा रहता है, अब जलता भी नहीं,

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गम का मुन्तज़र

गम का मुन्तज़र, उसकी आशिकी को बना डाला,
किस-किस को इस आशिकी ने, शायर बना डाला,


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रविवार, 25 दिसंबर 2011

वो खो गए

वो खो गए, ख्यालों में किन्ही के,
जब देखा उन्होंने उन्हें अकेले में,
मुलाक़ात तो वो पल पर की थी,
पर वो बस गए दिल-ही-दिल में,

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क्या लिखूँ

क्या लिखूँ, कैसे लिखूँ,
कुछ समझ आता नहीं,
जिन्दगी के यह हालात,
मैं किसी को बतलाता नहीं,

बड़ी बेबसी है,
बड़ी बेकसी है,
दिल में बहुत जगह है,
हर गम दिल की पनाह है,

हाज़िर न प्यार करूँ,
जाहिर न इनकार करूँ,
कैसे लिखूँ अपने मौजू को,
किस-किस का इंतज़ार करूँ,

कलम भी है, कागज़ भी है,
स्याही भी है, मेज भी है,
लिख न कुछ पा रहा हूँ,
हर गम आपसे छुपा रहा हूँ,

आँशु ही बह रहे हैं,
हालात वो सब कह रहे हैं,
पता आपका लिख रहे हैं,
चिट्ठी डाकखाने में डाल रहे हैं,

     ..........   पप्पू परिहार " पप्पू "


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शनिवार, 24 दिसंबर 2011

हर फिजा से कह

हर फिजा से कह चुके जो, उसे उसको न कहना था,
जिन्दगी गुज़र चुकी जो, उसे अपनी न कहना था,


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मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

तुमसे तन्हाईओं में

तुमसे तन्हाईओं में कुछ जिक्र तक न कर पाए,
अपने में ही रहे तुम्हारी फ़िक्र तक न कर पाए,
जिन्दगी न जाने कब की बीत गयी,
इस जिन्दगी को तुम्हारी नज़र तक न कर पाए,

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सोमवार, 19 दिसंबर 2011

ऐतबार कर ले

ऐतबार कर ले कोई एक बार, दिल यह चाहता है हर बार,
ऐतबार को संभालने के लिए, दिल संभालना पड़ता है हर बार,


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रविवार, 18 दिसंबर 2011

किसे अजनबी कहूँ

किसे अजनबी कहूँ, किसे पहचाना कहूँ,
नज़र जिससे मिली, कैसे बेगाना कहूँ,

असर दिल पर हुआ, इश्क उनसे हुआ,
कैसे अनजाना कहूँ, कैसे बेगाना कहूँ,

नज़र आने लगे, दिल में सामने लगे,
बात अब होने लगी, कैसे बेगाना कहूँ,

दिन जाने लगे, रात जाने लगी,
शादी होने लगी, कैसे बेगाना कहूँ,


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बुधवार, 14 दिसंबर 2011

तूने छेड़ा जिक्र

तूने छेड़ा जिक्र, तो मेरे हालात कुछ हो गए,
हाल-ए-हाल के, ख्यालात कुछ हो गए,
जिन्दगी कुछ हो गई, हालात कुछ हो गए,
न संभाले जा सके, वो जज़्बात कुछ हो गए,


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रुके न कदम

रुके न कदम, कुछ यूँ मकाँ-दर-मकाँ चले,
राह को नापते गए, हर दर पर बैठते चले,


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वक्त का दामन

वक्त का दामन थाम कर, राहों को नापता गया,
न जाने कितने पलों को, आहों से सेकता गया,

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तेरी निज्बत में

तेरी निज्बत में, सर-ए-आलम, जिन्दगी बिता दी,
राहों से कांटे हटा दिए, हार राह में फूल बिछा दिए,

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मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

परेशान-सी है

परेशान-सी है,
कुछ नज़र,
ना जाने,
क्या ढूँढती है,
कभी ईधर,
देखती है,
कभी उधर,
देखती है,

माथे पर,
पसीना है,
दिल भी,
धक्-धक् सीना है,
साँसों का मंज़र,
न थम रहा है,
किसी के,
इंतज़ार में,
लगता है,
यह हाल हो,
रहा है,

बेहाल-सी,
पगली-सी,
हो रही है,
न जाने,
किसे,
खोज रही है,

मैं तो आगे,
निकल गया,
उसे ऐसे ही,
छोड़ गया,
पता नहीं,
उसका,
क्या हाल हुआ,
पर उस रात,
न मैं,
सो हुआ,

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रविवार, 11 दिसंबर 2011

कुछ उसने न कहा

कुछ उसने न कहा, कुछ मैंने न बयाँ किया,
दिल की दिल में रख ली, बात यूँ समझ ली,

दोनों की धड़कन एक हुई, दोनों की रिदम एक हुई,
दोनों के दिल रुक से गए, दोनों बात समझ से गए,

धक्-धक् तेज़ होती गई, जिन्दगी एक होती गई,
इधर बेचैन होता गया, वो उधर बेचैन होती गई,

मिलने की तमन्ना तेज़ होने लगी, तेज़ी से भागने लगी,
सामने से उसे आता देखा, अपने को उसमे समाता देखा,

मिला सुकून उनको, दोनों निहाल हो गए,
बाज़ार में, दोनों के किस्से मशहूर हो गए,

मजमाँ बाज़ार में लग गया, हैरत से सब देखने लगे,
किसके नौनिहाल हैं, एक-दूसरे से पूछने-पाछने लगे,

सबकी नज़र उस ओर हुई, टकटकी पुरजोर हुई,
दुनिया से बेखबर, धीरे-से कदम बढ चले राह पर,

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