रविवार, 25 दिसंबर 2011

क्या लिखूँ

क्या लिखूँ, कैसे लिखूँ,
कुछ समझ आता नहीं,
जिन्दगी के यह हालात,
मैं किसी को बतलाता नहीं,

बड़ी बेबसी है,
बड़ी बेकसी है,
दिल में बहुत जगह है,
हर गम दिल की पनाह है,

हाज़िर न प्यार करूँ,
जाहिर न इनकार करूँ,
कैसे लिखूँ अपने मौजू को,
किस-किस का इंतज़ार करूँ,

कलम भी है, कागज़ भी है,
स्याही भी है, मेज भी है,
लिख न कुछ पा रहा हूँ,
हर गम आपसे छुपा रहा हूँ,

आँशु ही बह रहे हैं,
हालात वो सब कह रहे हैं,
पता आपका लिख रहे हैं,
चिट्ठी डाकखाने में डाल रहे हैं,

     ..........   पप्पू परिहार " पप्पू "


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