तुमसे तन्हाईओं में कुछ जिक्र तक न कर पाए,
अपने में ही रहे तुम्हारी फ़िक्र तक न कर पाए,
जिन्दगी न जाने कब की बीत गयी,
इस जिन्दगी को तुम्हारी नज़र तक न कर पाए,
.
अपने में ही रहे तुम्हारी फ़िक्र तक न कर पाए,
जिन्दगी न जाने कब की बीत गयी,
इस जिन्दगी को तुम्हारी नज़र तक न कर पाए,
.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें