गुमराह न कर उम्मीदों को,
आस इस दिल में रहने दे ।
अभी तो झलक मिली है,
कुछ तो दिल की कहने दे ।
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गुमराह न कर उम्मीदों को,
आस इस दिल में रहने दे ।
अभी तो झलक मिली है,
कुछ तो दिल की कहने दे ।
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है दबे पाँव चले आना,
मेरी महफिल उरूज़ पर
है ।
कुछ देर बैठकर जाना,
तेरी सहफिल दरूज़ पर
है ।
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वो जबाब-ए-हक माँग सकते हैं कैसे,
जब रुसवाइयों के आँसू बह चुके हैं ।
गुमसुम बैठे हैं भरे बाजार-ए-शोरगुल में,
अब सारे जहाँ में बेरोराईयाँ खो चुके हैं ।
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यह आशिकों की महफिल है जनाब,
यहाँ तनहाइयाँ मिला करती हैं ।
रुसवाइयाँ मिला करती हैं,
आशिकों को कहाँ शहनाईयाँ मिला करती हैं ।
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अब अफसाने बयाँ नहीं होते,
तह-लो जुबान में मेरी ।
अब कहानियों ने कह दिया है,
न करो तरफदारी मेरी ।
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जद्दोजहद की कशमश
में,
जिन्दगी की रवानियाँ
गईं ।
यही इसकी, यही उसकी,
हम सबकी कहानियाँ
भईं ।
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हैं जुनूँ, कि फ़ख्त,
ख्वाईशें पूरी हों ।
चाहे जिसकी भी हों,
पर ख्वाईशें पूरी
हों ।
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खामोश कदम उनके भी हैं
खामोश कदम उनके भी हैं,
खामोश कदम मेरे भी हैं ।
खामोशियाँ मंजर में छाईं हैं,
न किसी ने नज़र मिलाई हैं ।
कदम मेरे उठ न रहे हैं,
वो भी धीरे.......धीरे चल रहे हैं ।
दोनों के दिल पर बोझ है,
दोनों इसे समझ रहे हैं ।
वो राह अपनी पकड़ रहे हैं,
मैं राह अपनी पकड़ रही हूँ ।
उनकी मजबूरियाँ मुझे पता हैं,
मेरे मजबूरियाँ उन्हें पता
हैं ।
बस आखिरी मिलन को आए थे,
बुझे हुए दिलों को लाए थे ।
कुछ देर खामोशी में गले लगाए
थे,
दिल ही दिल में रोए थे ।
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रूहों के साये
रूहों के साये,
कभी साथ नहीं छोड़ते ।
अपनी मौजूदगी के,
एहसासों से खुदको जोड़ते ।
रोंगटे खड़े हो जाते,
जब आस.......पास रूहों के साये होते ।
जहन को झनझना जाते,
जब रूहों के साये जिस्म में
समा जाते ।
हो अहसास किसी की मौजूदगी का,
उसके जिस्म के जाने के बाद ।
वही तो साये रूहों के,
जो किसी और को नजर नहीं आते ।
रूहानियत का आलम यही है,
जिस्म के जाने के बाद भी,
अपनों का ख्याल रखती है ।
रूह से रूह को पकड़े रखती है ।
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