बुधवार, 17 मार्च 2021

खामोश कदम उनके भी हैं

 

खामोश कदम उनके भी हैं

 

खामोश कदम उनके भी हैं,
खामोश कदम मेरे भी हैं ।
खामोशियाँ मंजर में छाईं हैं,
न किसी ने नज़र मिलाई हैं ।

कदम मेरे उठ न रहे हैं,
वो भी धीरे.......धीरे चल रहे हैं ।
दोनों के दिल पर बोझ है,
दोनों इसे समझ रहे हैं ।

वो राह अपनी पकड़ रहे हैं,
मैं राह अपनी पकड़ रही हूँ ।
उनकी मजबूरियाँ मुझे पता हैं,
मेरे मजबूरियाँ उन्हें पता हैं ।

बस आखिरी मिलन को आए थे,
बुझे हुए दिलों को लाए थे ।
कुछ देर खामोशी में गले लगाए थे,
दिल ही दिल में रोए थे ।

 

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