खामोश कदम उनके भी हैं
खामोश कदम उनके भी हैं,
खामोश कदम मेरे भी हैं ।
खामोशियाँ मंजर में छाईं हैं,
न किसी ने नज़र मिलाई हैं ।
कदम मेरे उठ न रहे हैं,
वो भी धीरे.......धीरे चल रहे हैं ।
दोनों के दिल पर बोझ है,
दोनों इसे समझ रहे हैं ।
वो राह अपनी पकड़ रहे हैं,
मैं राह अपनी पकड़ रही हूँ ।
उनकी मजबूरियाँ मुझे पता हैं,
मेरे मजबूरियाँ उन्हें पता
हैं ।
बस आखिरी मिलन को आए थे,
बुझे हुए दिलों को लाए थे ।
कुछ देर खामोशी में गले लगाए
थे,
दिल ही दिल में रोए थे ।
.......
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें