इश्क में हारे हुए के, चन्द जख्म, कुरेदते रहते हैं, न लगाते मरहम,
अब अफसाने बयाँ नहीं होते, तह-लो जुबान में मेरी । अब कहानियों ने कह दिया है, न करो तरफदारी मेरी ।
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