इश्क में हारे हुए के, चन्द जख्म, कुरेदते रहते हैं, न लगाते मरहम,
यह आशिकों की महफिल है जनाब, यहाँ तनहाइयाँ मिला करती हैं । रुसवाइयाँ मिला करती हैं, आशिकों को कहाँ शहनाईयाँ मिला करती हैं ।
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