इश्क में हारे हुए के, चन्द जख्म, कुरेदते रहते हैं, न लगाते मरहम,
वो जबाब-ए-हक माँग सकते हैं कैसे, जब रुसवाइयों के आँसू बह चुके हैं । गुमसुम बैठे हैं भरे बाजार-ए-शोरगुल में, अब सारे जहाँ में बेरोराईयाँ खो चुके हैं ।
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