इश्क में हारे हुए के, चन्द जख्म, कुरेदते रहते हैं, न लगाते मरहम,
है दबे पाँव चले आना,
मेरी महफिल उरूज़ पर है ।
कुछ देर बैठकर जाना,
तेरी सहफिल दरूज़ पर है ।
….……
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