इश्क में हारे हुए के, चन्द जख्म, कुरेदते रहते हैं, न लगाते मरहम,
है मसगून, कि तौबार-ए-अलम करता हूँ । तुम बैठी रहो इसी तरह, मैं अलम-ओ-आराम करता हूँ ।
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