रविवार, 13 अक्टूबर 2013

श्रुति सेठ - 1

श्रुति सेठ,

तू कबसे आ गयी, तेरा ही इंतज़ार बहुत देर से था,
तेरे बिन सब सूना था, तेरे बिन सब बोर सा था,

तू अब आ गयी, शो में बहार छा गयी है,
एक ताजगी आ गयी, तू तो बहुत समां गयी है,

तेरे इस अंदाज़ का, कबसे इंतज़ार था,
तेरी इस आवाज़ को, दिल सुनने को बेकरार था,

तेरा आना बहुत अच्छा लगा, यह शो बहुत सुंदर लगा,
तेरा यह दीवाना, बहुत खुश होने लगा,

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