इश्क में हारे हुए के, चन्द जख्म, कुरेदते रहते हैं, न लगाते मरहम,
ता पसंद, यह जिक्र-ए-इनायत रहेगा । जमीं भी कहेगी, आसमां भी कहेगा ।
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