पीकर आशुओं को
स्वाद पता चला
जिन्दगी का
नमकीन सी है
अपने ही ग़मों
के आशुओं से
भरी सी है
गर गौर फ़रमाया
किसी को क्या भरमाया
अपना ही जख्म पाया
जो रिस-रिस के आया
.
स्वाद पता चला
जिन्दगी का
नमकीन सी है
अपने ही ग़मों
के आशुओं से
भरी सी है
गर गौर फ़रमाया
किसी को क्या भरमाया
अपना ही जख्म पाया
जो रिस-रिस के आया
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